1857 के ग़दर का गवाह है इटावा का उपेक्षित बलैयामठ

आजादी की गवाह इन खंडहरनुमा इमारतों की खस्ता हालत देखकर लगता है कि कुछ सालों में यहां सिर्फ एक सपाट मैदान के अलावा कुछ नहीं मिलेगा और युवा पीढ़ी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की इन धरोहरों की झलक भी देखने से महरूम रह जायेगी।

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1857 के ग़दर का गवाह है इटावा का उपेक्षित बलैयामठ | Itawah's neglected BalaiyaMath has witnessed 1857 revolt
1857 के ग़दर का गवाह है इटावा का उपेक्षित बलैयामठ | Itawah's neglected BalaiyaMath has witnessed 1857 revolt

1857 के ग़दर का गवाह है इटावा का उपेक्षित बलैयामठ
Itawah’s neglected BalaiyaMath has witnessed 1857 revolt


देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिये आजादी के दीवाने जहां अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने की रणनीति तैयार करते थे, वह बुलंद इमारतें सरकारी उदासीनता के कारण रखरखाव में लापरवाही बरते जाने से आज खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं।

आजादी की गवाह इन खंडहरनुमा इमारतों की खस्ता हालत देखकर लगता है कि कुछ सालों में यहां सिर्फ एक सपाट मैदान के अलावा कुछ नहीं मिलेगा और युवा पीढ़ी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की इन धरोहरों की झलक भी देखने से महरूम रह जायेगी।

देश शनिवार को आजादी की 73 वीं सालगिरह मनायेगा जहां उन जाने अंजाने अमर सपूतों को याद किया जायेगा जिन्होंने आजादी के लिए अपने प्राण हंसते हंसते न्यौछावर कर दिए। आज हमारे बीच आजादी के योद्धा तो नहीं हैं, लेकिन उनकी याद दिलाने के लिए कई खंडहर इमारतों के अवशेष जरूर हैं। आजादी के दौर की इन इमारतो को संजोने का सही ढंग से जिम्मेदारो की ओर से निर्वाहन नही किया गया परिणामस्वरूप आजादी के दौर की यादे सिर्फ याद बन करके रह गई है।

इटावा जिले में आगरा कानपुर हाइवे के पास से गुजर रहे जसवंतनगर के बलैयामठ का देश की आजादी की जंग में महत्वपूर्ण स्थान है। यह ऐतिहासिक बलैयामठ 1857 के गदर का गवाह है। जहां आजादी के दीवाने मंगल पांडे एवं उनके साथियों की फिंरगियों से हुई जंग की याद ताजा कराता है। बात 1857 की है जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हिंदुस्तानियों ने जंग छेड़ दी थी। हर ओर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के स्वर फूट रहे थे। मेरठ में भी विद्रोह ने तेजी पकड़ ली थी। ब्रिटिश शासकों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए कुचक्र रचा।

ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्यालय कलकत्ता से मेरठ में सैन्य व रसद सामग्री भेजी गई। आजादी के दिनो मे छोटे से कस्बे के तौर पर पहचाने जाने वाले जसवंतनगर के मोहल्ला फक्कड़पुरा में स्थित बलैया मठ इस रास्ते में ही पड़ता था। लिहाजा मंगल पांडे ने ब्रिटिश हुकूमत के इस कुचक्र को इसी स्थान पर ध्वस्त करने की ठान ली थी। मंगल पांडे और आजादी के दीवाने उनके साथियों ने इस मठ पर डेरा डाल दिया। 18 मई 1857 को क्रांतिकारी अपना मिशन पूरा करने में कामयाब हुए। कलकत्ता से मेरठ जा रही सैन्य व रसद सामग्री को यहीं पर लूट लिया था। ऐसे क्रांतिकारी स्थल को आजाद देश की रही सरकारों ने पूरी तरह से भुला दिया।

इस स्थल को विकसित करना तो दूर रहा बल्कि बलैया मठ का जीर्णाेद्वार करने की भी सुध नहीं ली। सत्तानसीनों ने इस को विस्मृत न किया होता तो देश की भावी पीढ़ी इसकी ऐतिहासिक गाथा से भली भांति परिचित होती। मगर यह स्थल आजादी के इतिहास के पन्नों तक ही सिमट कर रह गया। इलाके के लोग ही आपस में चंदा एकत्रित करके इस ऐतिहासिक धरोहर की समय-समय पर रंगरोगन कराते रहते हैं।

इटावा के बीहडी इलाके चकरनगर तहसील हिस्से मे सबसे ज्यादा ऐतिहासिक इमारतें हैं, 1857 के गदर में अलग अलग रियासतों के राजाओं को ब्रिटिश हुकूमत अपनी गुलाम बना रही थी। भरेह के राजा रूप सिंह तथा चकरनगर के राजा निरंजन सिंह जूदेव ने अंग्रेजों की दास्तां स्वीकार करने से इंकार कर दिया। नतीजन अंग्रेजों से जंग हुई। भरेह के राजा रूपसिंह के किले पर हमला बोल दिया गया। ग्राम बंसरी में आजादी पाने की ज्वाला भड़क चुकी थी। कई युवा आजादी के जंग में कूद चुके थे। उन्ही में से छह आजादी के दीवानों ने भरेह राजा के साथ युद्ध में अंग्रेजों से लोहा लिया।

अंग्रेजों से लड़ते लड़ते यह छह लोग गिरफ्तार कर लिए गए। बाद में उन्हें काला पानी की सजा सुनाई। उसी समय चकरनगर रियासत के राजा निरंजन सिंह जूदेव थे। उन्होंने भी अंग्रेजों से लोहा लिया। आजाद देश में सरकारों का दौर भी चलता रहा मगर न तो बंसरी के आजादी के दीवानों का कहीं कोई अता पता नहीं चल सका और न ही राजा निरंजनसिंह जूदेव का ही। सरकारों ने उन्हें खोजने तक का प्रयास नहीं किया।

बंसरी ग्राम के उन आजादी के दीवानों के परिजन आज भी यह जानने को उत्सुक हैं कि उनके बुजुर्गों का क्या हुआ। आजादी की जंग के गवाह बने भरेह व चकरनगर के दुर्ग को भी आजाद देश के सत्तानसीन संजोकर नहीं रख सके। इनको विकसित करने की ओर किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। लिहाजा यह दुर्ग आज पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। पुरातत्व विभाग की ओर से भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

बीहड़ी क्षेत्र चकरनगर में आज यहां यमुना-चंबल का संगम है वहां भरेह के राजा रूप सिंह का किला होने के साथ ही बंदरगाह हुआ करता था। 1857 से पहले यहीं से जलमार्ग के जरिए व्यापार होता था। अब यहां सिर्फ अवशेष ही शेष रह गए हैं। चकरनगर में यमुना किनारे बना मठ भी आजादी की याद दिलाता है क्योंकि राजा निरंजन सिंह जूदेव के सैनिक नरियल बाल्मीकि ने इसी जगह पर अतिक्रमण की फिराक में आए दो अंग्रेजों को मार गिराया था। इसके बाद ही अंग्रेजों ने चकरनगर के राजा निरंजन सिंह जूदेव के किले को तोपों से उड़ा दिया गया था।

चकरनगर खेड़ा की बस्ती भी अंग्रेजों ने अपनी तोपों से उड़ा दी। पुरातत्व विभाग ने ध्यान नहीं दिया इस कारण से बस्ती के खंडहर अवशेष भी विलुप्त हो चले हैं। कालेश्वर मंदिर और भारेश्वर मंदिर भी आजादी की याद दिलाते हैं। लोगों में इन प्राचीन मंदिरों के आस्था बहुत है, लेकिन सरकार की उपेक्षा से यह दोनों ही मंदिर जर्जर हो चले हैं।

कालेश्वर महापंचायत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार का कहना है कि आजादी के आंदोलन मे बीहडी इलाके का खासा योगदान रहा है और इस इलाके कई राजाओ ने अग्रेजो की दास्ता को स्वीकार नही किया परिणामस्वरूप उनके किलो को तोपो से ध्वस्त कर दिया गया है इन खंडहर किलो को आज भी दूर दराज से देखने के लिए लोग आते रहते है लेकिन लगातार खंडहर होने के कारण एक दिन इनके पूरे तरह से नष्ट होने का खतरा बढ रहा है जरूरत इस बात की है कि सरकारी तौर पर इस बात के प्रयास किये जाने चाहिए ताकि लोगो को अपनी आजादी के यादो को देखे जाने का मौका मिलता रहे।

केके कालेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डा.शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि आजादी के दौर की याद दिलाती इन ऐतिहासिक धरोहरों को अगर समय रहते संरक्षित नहीं किया गया तो इनकी तस्वीरें और स्मृतियां ही शेष रह जाएंगी। उनका कहना है कि समय रहते हुए सरकार को ऐसी योजनाए बनानी चाहिए ताकि आजादी के दौर की यादो को ना केवल संरक्षित किया जा सके बल्कि उनको देखने की मन मे ललक भी हमेशा बनी रहे।