मुलायम, मायावती और गेस्ट हाउस कांड | Mulayam Singh, Mayawati and Guest House Scandal

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गेस्ट हाउस काण्ड देश की राजनीति पर कलंक|
गेस्ट हाउस काण्ड देश की राजनीति पर कलंक|

मुलायम, मायावती और गेस्ट हाउस कांड |

Mulayam Singh, Mayawati and Guest House Scandal


आज हम आपको गेस्ट हाउस काण्ड के बारे में विस्तार से बता रहे हैं जिसने मायावती और मुलायम सिंह को जानी दुश्मन बना दिया। ये तारीख थी, 2 जून 1995 में बीएसपी ने एक दिन पहले ही मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में बनी सपा बसपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया अब तैयारी मायावती को यूपी की सत्ता पर बैठाने की थी। बीमारी से जूझ रहे बीएसपी सुप्रीमो कांशीराम दिल्ली में थे। मायावती लखनऊ में दोनों पल पल बदलती राजनीति और दांव पेच पर एक दूसरे से लगातार बात कर रहे थे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा से मिल कर मायावती बीजेपी कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर चुकी थी। अस्पताल में पड़े कांशीराम ने एक दिन पहले ही उन्हें बीजेपी नेताओं से हासिल समर्थन पत्र लेकर लखनऊ भेजा था। बीमारी की वजह से वो लखनऊ जाने की हालत में नहीं थे लेकिन उन्होंने मायावती को यह कहकर भेजा कि तुम्हें मुख्यमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता।

हर खेमे में मीटिंगों का दौर चल रहा था। कांशीराम और मायावती की इस चाल से आग बबूला हुए मुलायम सिंह किसी भी हाल में अपने हाथों से सत्ता की डोर फिसलने नहीं देना चाहते थे। इधर वीआईपी गेस्ट हाउस में मायावती तख्ता पलट की फुलप्रूफ योजना पर अपने सिपहसालारों के साथ बैठकर योजना बना रही थीं। वीआईपी गेस्ट हाउस के कॉमन हॉल में बीएसपी विधायकों और नेताओं की बैठक खत्म करने के बाद कुछ चुनिन्दा विधायकों को लेकर मायावती अपने रूम नंबर एक में चली गई। बाकी विधायक कॉमन हॉल में बैठे थे।

शाम के करीब 4 से 5 के बीच का वक्त रहा होगा। करीब दो सौ समाजवादी पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं के उत्तेजित हुजूम ने वीआईपी गेस्ट हाउस पर धावा बोल दिया। वे चिल्ला रहे थे ” चमार पागल हो गए हैं हमें उन्हें सबक सिखाना होगा”। इस नारे के साथ साथ और भी नारे लगा रहे थे जिनमें बीएसपी विधायकों और उनके परिवारों को घायल करने या जान से मारने की खुल्लमखुल्ला धमकियां थी। ज्यादातर नारे जातिवादी थे, जिनका उद्देश्य बीएसपी नेताओं को अधिक से अधिक अपमानित करना था। चीख पुकार मचाते हुए वे गंदी भाषा और गाली गलौच का इस्तेमाल कर रहे थे। कॉमन हाल में बैठे विधायकों ने जल्दी से मुख्यद्वार बंद कर दिया लेकिन उत्पाती झुण्ड ने उसे कर खोल दिया। फिर वे असहाय बीएसपी विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें हाथ लात मारने लगे और लाठियाने लगे। कम से कम 5 बीएसपी विधायकों को घसीटते हुए जबरदस्ती वीआईपी गेस्ट हाउस से बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया और उन्हें मुख्यमंत्री आवास ले जाया गया। उन पांच विधायकों को राजबहादुर के नेतृत्व में बीएसपी विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और मुलायम सरकार को समर्थन देने वाले पत्र पर दस्तखत करने को कहा गया। कुछ विधायक तो इतने डरे हुए थे कि कोरे कागज पर ही उन्होंने दस्तखत कर दिए। इधर गेस्ट हाउस में विधायकों को घेरा जा रहा था और मायावती की तलाश हो रही थी तभी कुछ विधायक दौड़ते हुए मायावती के रूम में आए और नीचे चल रहे उत्पात की जानकारी दी।

बाहर से भागकर आए विधायक आर.के. चौधरी और उनके गार्ड के कहने पर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया गया। तभी समाजवादी पार्टी के उत्पाती दस्ते का एक झुंड धड़धड़ाते हुआ गलियारे में घुसा और मायावती के कमरे का दरवाजा पीटने लगा। चमार औरत को उसी की मांद से घसीटकर निकालो जैसी आवाजें बाहर से भीतर आ रही थी। दरवाजा पीटने वाली भीड़ लगातार मायावती के लिए गंदे शब्दों का प्रयोग कर रही थी गालियां दे रही थी। कमरे के भीतर सभी सहमे हुए थे कि पता नहीं क्या होने वाला है। इसी दौरान हजरतगंज के एस.एच.ओ. बृजभूषण और दूसरे एस.एच.ओ. सुभाष सिंह भंगेल को सिपाहियों के साथ वहां पहुंचे। इस बीच गैस्ट हाउस की बिजली और पानी की सप्लाई काट दी गई। दोनों पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह से भीड़ को काबू में करने की कोशिश की, लेकिन नारेबाजी और गालियां नहीं थम रही थीं। थोड़ी देर बाद जब जिला मजिस्ट्रेट वहाँ पहुंचे तो उन्होंने पुलिस को किसी भी तरह के हंगामे को रोकने और मायावती को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया। इस बीच केंद्र सरकार राजपाल और बीजेपी के नेता सक्रिय हो चुके थे। इसका ही असर था कि भारी तादाद में पुलिस बल को वहां भेजना पड़ा। डीएम ने मोर्चा संभाला और मायावती के खिलाफ नारे लगा रही और गालियां दे रही भीड़ को वहां से खदेड़ दिया। डीएम ने समाजवादी पार्टी के विधायकों पर लाठीचार्ज तक का आदेश दिया तब जाकर वहां स्थिति नियंत्रण में आ सकी। मायावती के कमरे के बाहर वो खुद डटे रहे जब तक खतरा टल नहीं गया। फिर काफी देर तक भरोसा दिलाने के बाद कि अब कोई खतरा नहीं है।

मायावती के कमरे का दरवाजा खुला वहां से बाहर निकले मायावती और उनके करीबी विधायकों के चेहरे पर दहशत साफ झलक रही थी। कहा जाता है कि जिस वक्त वहां से बीएसपी विधायकों को घसीट कर सीएम हाउस ले जाया जा रहा था और मायावती के कमरे के बाहर हंगामा हो रहा था उस वक्त लखनऊ के एस.एस.पी. ओपी सिंह वहीं मौजूद थे। चश्मदीदों के अनुसार वो खड़े होकर चुपचाप सिगरेट फूंक रहे थे। पुलिस और स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना सब कुछ देख रहा था। जिला मजिस्ट्रेट मौके पर न पहुंचे होते और इस तेवर के साथ उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को न हटाया होता तो पता नहीं उस शाम वहां क्या हो जाता। मायावती तो उस रात सुरक्षित बच गई लेकिन अपनी ड्यूटी निभाने की सजा जिला मजिस्ट्रेट को मिली। रात को ही उनका तबादला हो गया। मुलायम सिंह यादव की सारी तिकड़म और साजिशें नाकाम हुई। अगले ही दिन 3 जून 1995 को मायावती ने यूपी के सीएम पद की शपथ ली। मुलायम सिंह यूपी की सत्ता से बेदखल हुए और यूपी की राजनीति में मायावती दबंग महिला के तौर पर स्थापित हो गई।

इस घटना को गेस्ट हाउस काण्ड के नाम से जाना जाता है। ये अलग बात है कि मुलायम को गिराकर सत्ता पर काबिज हुई मायावती और बीजेपी का रिश्ता भी महज पांच महीने में टूट गया। बीएसपी और बीजेपी के तार तीन बार जुड़े और तीनों बार अप्रत्याशित ढंग से टूटे। एक दूसरे को बेआबरू करके दोनों दल हर बार अलग हुए। अब एक बार फिर समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ आने की चर्चाएं हो रही हैं तो यह जानना जरूरी है कि दोनों के रिश्तों ने कैसे दिन देखे थे। मायावती ने उस दौरान मुलायम सिंह यादव पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगाया था और सालों तक इस आरोप को दोहराती रही थी। ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं है कि मुलायम सिंह की मर्जी और इजाजत के। मायावती को यूं घेरने और मारने पीटने की हद तक डराने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता था। इस गेस्ट हाउस कांड के बारे में पूरी जानकारी वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस की चर्चित किताब बहनजी से ली गई है।