दिल्लीपति महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर
दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से शुरू होता है, दिल्ली न जाने कितने ही साम्राज्यों के पतन और उत्थान की गवाह रही है। दिल्ली 7 बार वीरान हुई, तो 8 बार बसी भी। दिल्ली के बसने के पीछे कई राजाओं का योगदान रहा है, जिसमें से कई इतिहास के पन्नों में खो गए हैं। इन्हीं में तोमर राजवंश और राजा अनंगपाल का नाम भी शामिल है। अभी हाल में केंद्र सरकार दिल्ली की विरासत और इतिहास को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए दिल्ली के तोमर वंश के राजाओं से जुड़े फैसलों का सर्वेक्षण करने जा रही है और सरकार की योजना यहां एक संग्रहालय बनाने की है। इसके अलावा सरकार ने 11वीं सदी के तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय की विरासत को लोकप्रिय बनाने के लिए एक समिति बनाई है।
अनंगपाल द्वितीय राजा कौन थे ?
अनंगपाल द्वितीय जिन्हें अनंगपाल तोमर के नाम से भी जाना जाता है वे तोमर वर्ष के थे। तोमर वंश ने 8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच वर्तमान दिल्ली और हरियाणा के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। तोमर वंश के राज में इनकी राजधानियां कई बार बदलीं। जहां अनंगपाल प्रथम जिन्होंने 8वीं शताब्दी में तोमर वंश की स्थापना की। उनके कार्यकाल के दौरान राजधानी अनंगपुर थी, तो वहीं अनंगपाल द्वितीय के शासनकाल के दौरान दिल्लीकापुरी यानी आज की दिल्ली इसकी राजधानी थी। ऐसा माना जाता है कि लाल कोट और अनंगताल अनंगपाल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। बताया जाता है कि अनंगपाल द्वितीय के वंश से ही प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान जन्मे थे। वे अनंगपाल द्वितीय के पोते थे। यहां पर आपको बताते चलें कि पृथ्वीराज चौहान को तराई की लड़ाई में घुरिद बलों द्वारा पराजित किया गया था जिसके बाद 1192 में मोहम्मद गोरी की सेना द्वारा दिल्ली सल्तनत की स्थापना की गई। अनंगपाल द्वितीय को 11वीं शताब्दी में अपने शासनकाल के दौरान दिल्ली को स्थापित करने और आबाद करने का श्रेय दिया जाता है।
तोमर वंश का अंत कैसे हुआ?
तोमर वंश उत्तरी भारत के प्रारंभिक मध्ययुग के लघु शासक वैश्यों में से एक है। चरण परंपरा के अनुसार यह वर्ष 36 राजपूत वर्गों में से एक था। इस वंश का जिक्र अनंगपाल के शासन और 1164 में चौहान साम्राज्य में दिल्ली के विलय तक की अवधि के बीच मिलता है। अनंगपाल द्वितीय को इंद्रप्रस्थ को आबाद करने और इसे अपना वर्तमान नाम दिल्ली देने का श्रेय दिया जाता है। यह क्षेत्र तब खंडहर था जब अनंगपाल द्वितीय 11वीं शताब्दी में सिंहासन पर बैठे थे। इसके बाद उन्होंने लाल कोट किला और ताल बावली का निर्माण किया था। अनंगपाल द्वितीय के शासन का जिक्र चंद्रबरदाई के लिखे पृथ्वीराज रासो में भी मिलता है। इसमें अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। अनंगपाल के बाद तीन तोमर राजा दिल्ली की गद्दी पर बैठे, लेकिन तोमर राजवंश के शासन को मजबूत नहीं कर सके। 1192 में मोहम्मद गोरी दिल्ली में दाखिल हुआ और 1206 तक वो अपनी सल्तनत कायम कर चुका था। यहां पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिंदू शासक रहे और उन्हीं के साथ कई छोटे बड़े हिस्सों में फैले तोमर वर्ष के शासन का अंत हो गया।