आल्हा और ऊदल बुन्देलखण्ड के दो महान योद्धा।
आल्हा और ऊदल दो भाई थे, और बुन्देलखण्ड के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी उत्तर भारत के गांव गांव में गाई जाती हैं। जगदीश ने आलखन नामक एक काव्य रचा था। उसमें इन वीरों की गाथा दर्ज है। आलखन की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात् अवतार बताते हुए लिखा गया है। ये दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। यह बारहवी विक्रमी में पैदा हुए और 13वीं शताब्दी के पहले तक पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
12वीं सदी में ऊदल का जन्म।
ऊदल का जन्म बारहवी सदी में कीट दशमी दशहरा के दिन हुआ था। इनके पिता देशराज राजा जम्बे के माधोगढ़ के द्वारा युद्ध में मारे गए थे। आल्हा की मां का नाम देवल था जो अहीर जाति की थीं। देवल बड़ी बहादुर और ज्ञानी थीं, जिनकी मृत्यु पर आल्हा ने विलाप करते हुए कहा “मैया देवी सीना मिली हैं भैया न मिले बीर मलखान, बीच परन तो उदय सींग है जिन्हें जग जीत लाई किरपान”। राजा परिमाल की रानी मलाना ने ऊदल का पालन पोषण पुत्र की तरह किया था। रानी ने इन का नाम उदय सिंह रखा, ऊदल बचपन से ही युद्ध के लिए उतावला रहता था इसलिए आला खंड में लिखा है “जौन घड़ी यह लड़का जन्मों, दूसरों नाय रचकर करता, सेतू बनता रामेश्वर ने करी है जग जाहिर तलवा” ।
पृथ्वीराज चौहान द्वारा ऊदल की हत्या।
ऐसा कहा जाता है कि, भाई ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के बाद आल्हा ने संन्यास ले लिया जो आज तक अमर है। उस समय ही अलौकिक वीर गाथाओं को तब से लेकर अब तक बुन्देली समाज में अलग-अलग मंडलियां जाती रही हैं। आज भी आला सुन कर लोगों में जोश भर उठता है।
पिता की मौत का बदला
राजा परमाल देव चंदेल खानदान का आखिरी राजा था। 13वीं शताब्दी के शुरुवात में वह खानदान समाप्त हो गया। महोबा जो एक मामूली सा कस्बा है उस जमाने में चंदेला की राजधानी था। महोबा की सल्तनत दिल्ली और कन्नौज से आँखे मिलाती थी। आल्हा और ऊदल इसी राजा परमाल देव के दरबार में सम्मानित सदस्य थे। ये दोनों भाई अभी बचे ही थे कि, उनका बाप जसराज इस लड़ाई में मारा गया। बचपन से ही दोनों के अंदर बाप की हत्या का बदला लेने का जुनुन शोला बन कर धधक रहा था। जवान होकर यही दोनों भाई बहादुरी में सारी दुनिया में मशहूर हुए। इन्हीं दिलावरी के कारनामों ने महोबा का नाम रौशन कर दिया, इनकी वीरता के बारे में कई कहावतें भी हैं।
आला उदल राजा परमाल देव पर जान कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। रानी मलिना ने उन्हें पाला, उन्हें गोद में खिलाया, उनकी शादियां की। नमक के हक के साथ-साथ इन अहसानों और संबंधों ने दोनों भाइयों को चंदेल राजा का जोड़ी सा रखवाला और राजा परमाल देव का वफादार सेवक बना दिया। उनकी वीरता के कारण आसपास के सैकड़ों घमंडी राजा चंदेला के अधीन हो गए। “किला किला पर परमाले की रानी दुहाई दीहे फिराय सारे गढ़ों पर विजय के करिके जीत का झंडा दिहे गड़ाय” महोबा राज्य की सीमाएं नदी की बाढ़ की तरह फैलने लगी और चंदेल की शक्ति लगातार बढ़ती गयी। ये दोनों भी कभी चैन से न बैठते थे, रणक्षेत्र में अपने हाथ का जौहर दिखाने की उन्हें धूम थी, सुख सेज पर उन्हें नींद नहीं आती थी और वो जमाना भी ऐसा ही बेचैनी से भरा हुआ था। उस जमाने में चैन से बैठना दुनिया के पर्दे सिमट जाना था। बात-बात पर तलवारें चलतीं और खून की नदियां बहती थीं। यहां तक की शादियां भी खूनी लड़ाइयों जैसी हो गई थीं। अगर लड़की पैदा हुई और शामत आ गई।
मामा की साजिश का शिकार।
आल्हा ऊदल दोनों भाई वीर थे लेकिन अपने ही मामा के साजिश के शिकार हो गए और आखिरकार एक दिन दोनों भाइयों ने महोबा से कूच कर दिया। अपने साथ अपनी तलवार और घोड़ों के सिवा और कुछ न लिया। माल असबाब सब वहीं छोड़ दिए। सिपाही की दौलत और इज्जत सब कुछ उसकी तलवार है, जिसके पास वीरता की संपत्ति है उसे दूसरी किसी संपत्ति की जरुरत नहीं। आला ने महोबा को आखिरी सलाम किया। दोनों भाइयों की आखे रोते-रोते लाल हो गई क्योंकि, आज उनसे उनका देश छूटा था। इन्हीं गलियों में उन्होंने घुटने के बल चलना सीखा था।
महोबा से विदाई और जयचंद से मिलन
अब दो भाई जिनका कोई देश न था, एक ठंडी सांस ली और घोड़े बढ़ा दिए। उनके निर्वासन का समाचार बहुत जल्द चारों तरफ़ फैल गया। उनके लिए हर दरबार में जगह थी। चारों तरफ से राजाओं के संदेश आने लगे। कन्नौज के राजा जयचन्द ने अपने राजकुमार को उनसे मिलने के लिए भेजा, संदेशों से जो कामना निकला वो इस मुलाकात ने पूरा कर दिया। राजकुमार की आवभगत दोनों भाइयों को कन्नौज खींच ले गई। जयचंद आँखे बिछाए बैठा था। जयचंद ने आल्हा को अपना सेनापति बना दिया। उधर आल्हा और ऊदल के चले जाने के बाद महोबा में तरह तरह के अंधेरे शुरू हो गए।