धोलावीरा – गुजरात के कच्छ में हड़प्पा कालीन सभ्यता का रहस्यमयी शहर | Dholavira – Mysterious City of Hadappan Civilization at Kachchh of Gujarat
भारत के पश्चिमी छोर पर है दुनिया का सबसे बड़ा बियाबान नमक का एक विशाल तालाब कच्छ का रण। एक जमाने में ये भी समंदर का हिस्सा था। मगर हजारों वर्षों के दौरान ऐसी भौगोलिक बदलाव हुए कि ये दुनिया में नमक का सबसे बड़ा ताल बन गया। करीब 20 हजार स्क्वेयर किलोमीटर में फैला ये बंजर बियाबान। जहां कभी बसा था भारत के अनजानी इतिहास के महानतम शहरों में से एक हड्डपा का धोलावीरा। इसकी खोज हुई थी सन् 1956 में। लेकिन धोलावीरा के अवशेष 35 सालों तक जमीन में ही दबे रहे। धोलावीरा की खुदाई सन 1990 मे शुरू हुई, कई साल की खुदाई के बाद बेश कीमती चीजें मिलीं। लेकिन एक दिन तो अजूबा हो गया। जमीन से बाहर निकल रहा एक सफेद पत्थर नजर आया। फिर और निकले प्रतीक नजर आने लगे जो शायद किसी प्राचीन भाषा या कोड के थे या शायद किसी और दुनिया के यहां ऐसी कोई चीज पहले कभी नहीं मिली थी।
क्या ये सिंधु घाटी सभ्यता के छिपे राज खोल सकता था जिनकी चाबी छिपी है एक ऐसी भाषा में जिसे अब तक कोई नहीं समझ पाया। एक के बाद एक कुल 10 प्रतीक पाए गए। सभी सफेद जिप्सम से बने थे। धोलावीरा में जो खोज हुई है, उसकी सबसे चौंकाने वाली और सबसे अच्छी बात ये है कि वो उन आर्कियोलॉजिस्ट को उस शहर के गेट के बेस के पास मिले थे और हो सकता है कि उस ज़माने में कोई साइनबोर्ड रहा हो। मगर उस पर क्या लिखा है हम यह नहीं जानते और हम क्यों नहीं जानते। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि हम उसे पढ़ नहीं सकते तो हड़प्पा के लेखों के साथ परेशानी यही है कि हमें आज तक उन्हें पढ़ने वाला नहीं मिल पाया है। अभी तक उन्हें समझा नहीं जा सका है इसलिये धोलावीरा के वो प्रतीक आज भी राज ही बने हुए हैं।
आज के गुजरात के कच्छ जिले में बसा धोलावीरा कभी सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा और उसके सबसे बेहतरीन शहरों में से एक था। आर्कियोलॉजिस्ट मानते हैं कि करीब 120 एकड़ में फैला वो शहर पांच हजार साल पुराना था। मिस्र के ग्रेट पिरामिड से भी पुराना। धोलावीरा करीब डेढ़ हजार साल तक बसा रहा। धोलावीरा के लोग बड़े ही सभ्य लोग थे। उनके पास उस वक्त भी बड़ी उन्नत टेक्नॉलजी थी। आप खुद सोचिए 3600BC में उन्होंने जमीन के नीचे नालियां बना ली थीं। उनके पास पकी हुई ईंटें थीं और ऐसा शहर था जिसे एक योजना बनाकर बसाया गया था। वो शहर एक प्लैटफॉर्म पर बसा था। इसका मतलब ये कि वो सिविक प्लानिंग के बारे में जानते थे। उन्हें ट्रिग्नोमेट्री की बहुत अच्छी समझ थी। रेशियो का अंदाजा था और वो ऐसा कैलकुलेशन जानते थे जो एक महानगर बसाने के लिए जरूरी है।
लेकिन इस प्राचीन शहर को बसाने वाले लोग कौन थे? उन्होंने उस जमाने में ट्रिग्नोमेट्री का इस्तेमाल किया था जब दुनिया उसके बारे में जानती भी नहीं थी। क्या हमारे पूर्वजों ने अपना शहर बसाने के लिए मिट्टी के मॉडल्स बनाई थे। हम ये कभी नहीं जान पाएंगे पर इस बात में कोई शक नहीं कि उन्हें सिविल इंजिनियरिंग, जियॉलजी और हाइड्रोलॉजी की जानकारी थी। धोलावीरा उस जमाने का ऐसा शहर था जहां पानी की बड़ी अच्छी व्यवस्था थी। ये शहर दो नदियों के बीच बसा था। उत्तर में मानसर तो दक्षिण में मनहर नदी बहती थी। दोनों नदियों को शहर भर में बने एक दूसरे से जुड़े टैक्स से जोड़ा गया था। आज 21वीं सदी में दुनिया भर में पीने के पानी की कमी हो रही है और जिसकी वजह से युद्ध हो सकते हैं लेकिन उन्होंने धोलावीरा में पानी पर नियंत्रण कर लिया था वह चैनल्स दानिक्स और डैम का इस्तेमाल करते थे।
हम धोलावीरा से नसीहत ले कर आज उन चीजों का इस्तमाल कर सकते हैं। पांच हजार साल पहले धोलावीरा अरब सागर का एक बड़ा व्यस्त बंदरगाह था। व्यापार चरम पर था और यहां के लोग निर्यात के लिए मनके बनाते थे। धोलावीरा में बने मनके मेसोपोटामिया तक मिले हैं यानी आज के इराक में, धोलावीरा के बारे में ये पता ही नहीं लग पाया कि वो अचानक कैसे गायब हो गया। धोलावीरा उस ज़माने का मैनहैट्टन था। उस उन्नत सभ्यता ने कुदरत की शक्तियों को साध लिया था। लोग दुनिया भर में व्यापार करते थे उसकी आबादी कई हजार थी और वो अचानक ही गायब हो गया। वजह क्या थी ज्यादातर रिसर्चर्स मानते हैं कि सबसे बड़ी वजह थी जलवायु बदलाव।
इसके बाद भारत के वो प्राचीन लोग अपने राज अपने साथ समेटे कहीं और चले गए। उनके लेखों का क्या हुआ। शहर बसाने की उनकी टेक्नॉलजी कहां गई। यह सब कहां गायब हो गए। इन सवालों का जवाब ढूंढने पर और सवाल ही खड़े होते हैं। हम आज भी धोलावीरा के बारे में जानकारी पाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन शायद उसके ज्यादातर राज़ उसके उन कोट्स की तरह रहस्यमय ही बने रहेंगे।