इन्दिरा गांधी ने कैसे जब्त किया जयपुर के जयगढ़ का खजाना।
How India Gandhi Confiscate Treasure from Jaigarh Fort of Jaipur
राजस्थान भारत का नॉर्थ वेस्टर्न स्टेट है। ये एरिया वाइज इंडिया का बिगेस्ट स्टेट है, जो आजादी के पहले ब्रिटिश, राजपूत और मुगलों की शासन और लड़ाइयों से होकर गुजरा है। जब राज किया तो राजाओं ने इस रीजन में अपनी रहने और ठाठ-बाठ और ऐशो आराम के लिए सैकड़ों महल और युद्ध के लिए फोर्ट बनवाए। इन धरोहरों में से कई खत्म हो गए पर कुछ अब भी बाकी हैं। आज हम ऐसे ही एक फोर्ट के बारे में बात करेंगे जिसका नाम है जयगढ़ फोर्ट(Jaigad Fort)
इस फोर्ट से 300 साल का इतिहास जुड़ा है। ये फॉल्ट इंडियन हिस्ट्री में एक रोल प्ले करता है जिसमें राजपूत किंग्डम से लेकर इंडियन मॉडर्न हिस्ट्री तक का पीरियड शामिल है। जयगढ़ फोर्ट में हुए कुछ हिस्टोरिकल इम्पोर्टेन्ट और पॉलिटिकली कॉन्ट्रोवर्शियल इवेंट्स आज भी इस फोर्ट को जेहन में ताजा रखते हैं।
जयगढ़ फोर्ट राजा सवाई जयसिंह सेकंड ने से 1726 मे आमेर या अंबेर के किले से थोड़ी दूरी पर बनवाया था। यदि डिस्टेंस की बात करें तो जयपुर शहर से इस किले की दूरी करीब 15 किलोमीटर है। कहा जाता है कि जय सिंह ने ये फोर्ट आमेर के किले और नाहरगढ़ किले की रक्षा के लिए बनवाया था। राजस्थान में अरावली माउंटेन रेंज में स्थित एक हिल पर बनाया गया ये फोर्ट आमेर फोर्ट से 400 मीटर ऊंची पहाड़ी पर है। जिससे यहां से दूर तक देखा जा सकता है।
राजपूत के कछवाहा ने 10वी सेंचुरी में आमीर में अपना एम्पायर स्टैब्लिश किया था। उससे पहले तक आमेर को ढूंढहार कहा जाता था। फोर्ड की कई खासियत हैं जिनमें से एक है इसकी जैयवाण कैनन। कहा जाता है कि, जैयवाण कैनन दुनिया की सबसे बड़ी कैनन है, जिससे केवल एक टेस्ट फायर किया था और तालाब बन गया था। उसके बाद से वह कभी नहीं चलाई गई। ये कैनन अब भी जैगर फोर्ड में रखी हुई है। सवाई जयसिंह ने इस फोर्ट के अलावा जयपुर को भी स्टैबलिश किया था। जयपुर और इस फोर्ट के अलावा जंतर मंतर को भी जयसिंह ने बनवाया था।
लेकिन इस फोर्ट की हिस्ट्री में सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा लगाई गई नैशनल इमरजेंसी के कुछ इवेंट्स बड़ी इम्पोर्टेन्ट हैं। इस फोर्ट से जुड़ी कई कहानियां भी हैं। कई अफवाहें भी और कई वास्तविकताएं भी उनमंइ से एक कहानी ये है कि, मानसिंह ने अफगानिस्तान से लूटकर लाए एक खजाने को आमेर के किले में छिपा दिया था।
आमेर का किला और जयगढ़ फोर्ट आपस में कई कारणों से जुड़े हुए हैं। एक बड़ा ही स्वाभाविक कारण तो ये है कि वो जयपुर रॉयल फैमिली के ही फोर्ट हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिससे आमेर फोर्ट और जयगढ़ फोर्ट की कहानियां हमेशा के लिए जुड़ी हुई हैं। कहानी शुरू होती है सिक्सटीन सेंचुरी में जब जयपुर के राजा मानसिंग द फर्स्ट की बहन जोधाबाई को अकबर ने देखा। अकबर और जोधाबाई की शादी हुई और अकबर ने मानसिंह द फर्स्ट की बहादुरी देख उन्हें अपना एक भरोसेमंद जनरल नियुक्त किया। अकबर ने उन्हें अपने नवरत्नों में से एक बनाया। अकबर मानसिंह द फर्स्ट से जहां लड़ने को कहते थे वहां मुगल सल्तनत का परचम लहराने लगता था। कहा जाता है कि, अकबर में मानसिंह फर्स्ट से अफगानिस्तान में कुछ कबीलों से लड़ने को कहा, क्योंकि मुगल सल्तनत वहां भी अपना झंडा फहराना चाहती थी। मानसिंह द फर्स्ट 1581 में काबुल जाते हैं और वहां अलग अलग कबीलों के सरदारों के साथ जंग करते हैं। एक -एक कर वह सभी कबीलों से जंग जीते जाते हैं। कहा जाता है कि, कबीलों से जीतने के बाद टन ऑफ गोल्ड एंड ट्रेजर मानसिंह द फर्स्ट अफसरों और उनके सैनिकों ने लूटा और भारत ले कर आए। पर भारत लाने पर इस खजाने के बारे में अकबर को नहीं बताया और आमेर के किले में दफना दिया। ये सोना आमेर के किले में था। अकबर को नहीं पता था और बात खत्म हो गई।
उस वक्त इस घटना में शामिल लोगों के अलावा किसी को इस खजाने के बारे में नहीं पता था। लेकिन कुछ सालों बाद एक किताब सामने आई। इसका नाम था “हस्त तिलस्मी अंबेर” और इसने कुछ सीरियस इश्यू सामने रखे। हस्त तिलस्मी अंबेर का मतलब है अंबेर के साथ खजाने। इस बुक में मानसिंह फर्स्ट के खजाने का जिक्र था जिसके बाद जयपुर और उसके आस पास छिपे हुए खजाने की बात शुरू हो गई। मुगलों के बाद अंग्रेजों के वक्त भी कई दफा तलाशी हुई पर कुछ नहीं मिला। आमेर के अलावा जयगढ़ फोर्ट में भी देखा पर कुछ नहीं मिला। बुक के मुताबिक ये कहा गया था कि, सात पानी के टैंक्स में खजाने को छुपाया गया है। क्या ये सच था या केवल बातें। कोई नहीं जानता। धीरे- धीरे अंग्रेजों का शासन भी खत्म हुआ और भारत स्वतंत्र हो गया। इंडिपेंडेंस के दौरान जयपुर के राजा थे मानसिंह सेकंड और उनकी पत्नी थी गायत्री देवी। इंडिपेंडेंस के करीब 28 सालों बाद देश में नैशनल इमरजेंसी लगाएंगी। इसके दौरान जैगर फोर्ट में जो हुआ उसके लिए हमें मानसिंह द सेकंड की पत्नी गायत्री देवी और इंदिरा गांधी के रिश्तों को समझना बहुत जरूरी है।
गायत्री देवी आज के पश्चिम बंगाल में लोकेट कूच बेहार किंगडम के रूलर महाराजा जीतेंद्र नारायण और इंदिरा देवी की बेटी थीं। जिनकी शादी जयपुर के राजा मानसिंह से हुई थी, गायत्री देवी और इंदिरा गाँधी एक दूसरे को पहले से जानती थीं। यंग वुमन दोनों ने शांति निकेतन वेस्ट बंगाल में रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्टैबलिश पाथर भवन में पढ़ाई की थी। लेकिन इंदिरा गांधी और गायत्री देवी के बीच रिश्ते कभी बेहतर नहीं रहे। 1962 में गायत्री देवी ने जयपुर से लोकसभा इलेक्शन लड़ा और उस वक्त की रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्ल्ड रिकॉर्ड मार्जिन से जीत हासिल की। आपको बता दें की उन्होंने सी राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ा था और कांग्रेस की शारदा देवी को हराया था। गायत्री देवी एक स्ट्रांग पॉलिटिकल कंटेंट के तौर पर सामने आ रही थी और पॉलिटिकल लीडरशिप के अलावा वो एक राज घराने की महारानी भी थी।
दूसरी तरफ इंदिरा गांधी के भी कुछ कंसल्टेंट्स थे जैसे कि वो प्रिंसअली प्रिविलेज को लेकर नाराज रहती थी। 1971में ट्वेंटी सिक्स्थ अमेंडमेंट के साथ इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स को हटाया। इस अमेंडमेंट के पहले तक राज घरानों को कई प्रिविलेज और प्रिंसअली को कंपनसेशन दिए जाते थे। 26th अमेंडमेंट से इन प्रिविलेज जिसको खत्म किया गया और एक डेमोक्रैटिक और सोसाइटी की तरफ रास्ता बनाने पर फोकस बढ़ाया गया। इसके अलावा कई अमेंडमेंट भी किए गए। केशवानंद भारती केस जो एक लैंडमार्क जजमेंट का बेस बना, 1973 में इंदिरा गांधी रिजीम में ही हुआ था। सुप्रीम कोर्ट को इस केस के मीडियम से बताना पड़ा कि पार्लियामेंट के पास भले ही कॉन्स्टिट्यूशन अमेंडमेंट करने की पूरी शक्ति है पर वो संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर से किसी भी रूप में उलट फेर नहीं कर सकती।
इसके कुछ सालों बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में इलेक्शन मैल प्रैक्टिस का मुकदमा चला। उन्हें कोर्ट ने गिल्टी पाया और उनके इलेक्शन को अमान्य घोषित कर दिया गया। कोर्ट ने इंदिरा गांधी को छह साल तक किसी भी सीट से चुनाव लड़ सकती से भी वंचित कर दिया और उनका चुनाव रद्द कर दिया।
गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन शुरू हुआ। उधर 1974 में मूवमेंट शुरू हुआ अगेंस्ट “government miss rule and corruption”। जॉर्ज फर्नांडिस ने 1974 में रेलवेज की प्रोटेस्ट लीड की। जिसके कारण करीब तीन हफ्तों तक रेलवे इस बंद थी। इस तरह इस पॉलिटिकली सिचुएशन के चलते 25 जून 1975 को नैशनल इमरजेंसी इम्पोस की गई।
हम इमरजेंसी में चल रही हमारी जैगर फोर्ट की हिस्ट्री पर वापस आते हैं। प्रिवी पर्स अमेंडमेंट का जयगढ़ फोर्ट ट्रेजर हंट से सीधा संबंध है और इमरजेंसी इम्पोर्ट करने के बाद ट्रेजर हंट आसान हो गया था क्योंकि इस दौरान इंदिरा गांधी ने अथॉरिटीज रेड टीम चलाई और कई लीडर्स, जर्नलिस्ट, क्रिटिक्स और अप्रोच करने वालों को जेल में डाल दिया। इसी दौरान उन्होंने गायत्री देवी को भी तिहाड़ जेल में छह महीने कैद करके रखा था। इंदिरा गांधी उस वक्त पूरे भारत में कई कठोर स्टेप्स ले रही थीं। रजवाड़ों से लेकर नेताओं तक सभी पर। इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी भी इमरजेंसी के दौरान पॉलिटिकली एक्टिव थे। वो पॉलिटिकल डिसिजन मेकिंग में इतने एक्टिव थे कि, कहा जाने लगा था कि गवर्नमेंट संजय गांधी ही चलाते हैं। यहां एक बात पर गौर किया जाना चाहिए।
जो हफ्ते तिलिस्म में अंबारी किताब में बातें पब्लिश थी वो लीडर्स के कानों तक भी पहुंची। इमरजेंसी चल रही थी। गायत्री देवी जेल में थीं और इंदिरा गांधी के पास अच्छा मौका था कि, वह जयपुर के किलों में खजाना ढूंढ सकें।
10 जून 1976 इमरजेंसी के करीब एक साल बाद जैगर फोर्ट में इनकम टैक्स, पुलिस और आर्मी की टीम पहुंचती हैं। इन सभी टीम्स ने खुदाई कर खजाना ढूंढना शुरू किया, लेकिन एक सवाल ये था कि खजाना तो आमेर फोर्ट में था तो जयगढ़ फोर्ट में क्यों खुदाई शुरू की। इसके पीछे का तर्क ये था कि 1592 में बना आमेर फोर्ट और 1726 में बना जयगढ़ फोर्ट एक सुरंग से जुड़ता था। ये बात सामने आई तो कहा जाने लगा कि तलाशी तो जैगर फोर्ट की ही हो रही है पर रियालिटी में आमेर फोर्ट में खजाना ढूंढा जा रहा है। जयगढ़ फोर्ट को तहस नहस कर दिया गया था और रिपोर्ट्स के मुताबिक कर्फ्यू का माहौल तो था ही किले के आसपास दूर तक आम इनसान के आने जाने पर पाबंदी थी। ये बातें खजाने की मात्रा से जुड़ी कहानियां कुछ दिनों तक लोकल ही रहीं क्योंकि मौजूदगी में मीडिया इन्फर्मेशन फ्लो पर पाबंदियां थी। लेकिन धीरे धीरे खजाने की बातें भारत और फिर दुनिया में फैली। पहले दिल्ली और फिर जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तानी पीएम तक पहुंची। जुल्फिकार अली भुट्टो ने 11 अगेंस्ट 1976 को इंदिरा गांधी को लेटर लिखकर कहा कि उन्हें पता चला है कि, जयगढ़ फोर्ट में खजाना ढूंढा जा रहा है। यदि ये खजाना मिलता है तो पाकिस्तान को उसका हिस्सा दिया जाना चाहिए। अब सवाल उठ सकता है कि स्वतंत्र भारत में यदि खजाना मिलता भी है तो उस पर पाकिस्तान का हक क्यों।
भुट्टो ने कहा कि जब इंडिया पाकिस्तान बंटवारा हुआ था तब इस खजाने की कोई जानकारी नहीं थी और 1974 के एक समझौते के मुताबिक फ्यूचर में यदि 1974 से पहले से मौजूद किसी चीज का पता चलता है तो उस पर पाकिस्तान का हक होगा क्योंकि पहले दोनों देश एक थे। ये लेटर रिपोर्टर डेली पाकिस्तान की तरफ से लीक हो गया।
जुल्फिकार अली भुट्टो के लेटर के बाद ग्लोबली हल्ला मचा कि, भारत में कोई खजाना है जिसे ढूंढने के लिए कर्फ्यू लगाया गया है और इंडियन गवर्नमेंट अपने रिसोर्सेज यूज कर इसे ढूंढ रही है। इंदिरा गांधी ने लेटर का जवाब तुरंत नहीं दिया। 1976 में इंदिरा गांधी ने ऑर्डर दिया कि सर्च आपरेशन अब बंद कर दिए जाएं। इसी दौरान जुल्फिकार अली भुट्टो को लेटर के जवाब में इंदिरा गांधी ने लिखा कि, लीगल टीम से बातचीत के बाद ये कनक्लूजन निकाला गया है कि, पाकिस्तान का किसी खजाने पर कोई हक नहीं बनता है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि, कोई खजाना नहीं मिला है और जब खजाना है ही नहीं तो बात को खत्म किया जाए। इंदिरा गांधी ने ऑफिशली ये कहा कि जयगढ़ फोर्ट में सिर्फ 230 किलो सिल्वर एंड सिलवर स्टाफ मिला है, कोई खजाना नहीं मिला है।
लेकिन जब खजाना मिला नहीं तो गया कहां। इस मैटर पर कुछ वर्किंग थियरी हैं। हालांकि इनके एविडेंस आज नहीं हैं। खजाने को लेकर आज तक इन्फर्मेशन डाउटफुल है। इसका कारण ये है कि, जब इंदिरा गांधी ने कहा कि खजाने की खोज बंद कर दी जाए उसके एक दिन बाद जयपुर दिल्ली हाईवे बंद कर दिया गया और कहा जाता है कि, उस पर केवल मिलिट्री के ट्रक्स दिखे। इसके अलावा आज तक सरकार ने इसके जवाब में कुछ नहीं कहा है।
इस तरह की भ्रमित करने वाले स्टेप्स के बाद कुछ कहानियां सामने आई हैं जिनका कोई एविडेंस नहीं है। एक कहानी ये थी कि, उस किले से बहुत बड़ा खजाना मिला था जिसे ट्रक्स में भरकर दिल्ली ले जाया गया। किसी को भनक न लगे इसलिए रूट ब्लॉक किए गए। जब सवाल उठा कि खजाना गया कहां तो दूसरी कहानी ये थी कि दिल्ली एयरपोर्ट से दो एयर प्लेन्स में भरकर खजाने को स्विट्जरलैंड ले जाया गया था। कौन से एयरोप्लेन थे कहां खड़े थे और क्यों खड़े थे। इस पर रिलायबल इन्फर्मेशन मौजूद नहीं है। एक बात ये भी है कि यदि खजाना सही में नहीं मिला तो मानसिंह का खजाना गया कहा। तो कहा जाता है कि जयसिह ने खजाना ढूंढा था और उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा जयपुर शहर को बसाने और बनाने में खर्च कर दिया गया था। लेकिन सच क्या है ये किसी को नहीं पता। गायत्री देवी जब जेल से बाहर आईं तो उन्होंने भी खजाने के बारे में कुछ नहीं कहा। लेकिन पाकिस्तान के पीएम और इंदिरा गांधी के लेटर्स से ही समझ आता है कि, खजाने पर डिस्कशन तो हुए हैं ।इस बारे में भी कुछ नहीं पता कि जयपुर दिल्ली हाईवे क्यूं बंद था और वहां संजय गांधी मिलिट्री, पुलिस और कर्फ्यू क्यों था। ऐसा क्या हुआ था कि पाँच महीनों तक खोजबीन चलती रही। इन सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं।