एतिहासिक है 41 साल बाद ओलिम्पिक हॉकी में मिला पदक

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एतिहासिक है 41 साल बाद ओलिम्पिक हॉकी में मिला पदक
एतिहासिक है 41 साल बाद ओलिम्पिक हॉकी में मिला पदक

एतिहासिक है 41 साल बाद ओलिम्पिक हॉकी में मिला पदक


इंतजार घड़ी पर चलती 60 मिनट की सुइयों के थमने का। इंतजार आखिरी लम्हे पर विपक्षी के अंतिम दांव को बेकार करने का इंतजार। इंतजार 41 साल बाद पोडियम पर अपने कदम का।

गुरुवार की सुबह जैसे इन्तजार रूपी इस सबसे भारी शब्द हमारे जेहन से निकालने की सुबह। एक ऐसी सुबह जिसका ख्वाब देखते- देखते कई पीढ़ियां बीत गयी। बीते मैच की अंतिम सीटी बजने पर स्कोर बोर्ड पर भारत के पक्ष में चमकते 5 -4 के अंक। इस संघर्ष रूपी सफर की पूरी कहानी बयां कर रही।

भारतीय हॉकी की जो कहानियां हमें परीकथा सी लगने लगी थीं, आज का स्कोरबोर्ड हमें उन परी कथाओं पर यकीन दिलाने की कोशिश कर रहा था। आज की सुबह एक नई विजयी गाथा बनाने की सुबह थी। जर्मनी की तेज तर्रार अटैकिंग टीम के सामने भारत के जो लड़के खड़े थे, उनके कंधों पर सिर्फ ये मैच जीतने का भार नहीं था। उन पर नजरें थीं, उन पूर्वजों की, जो मैदान और सिस्टम से लड़ते लड़ते कई बार हार चुके थे। शायद ये दबाव भी था कि, शुरुआती लम्हों में नीली जर्सी संभल ही न पाई, मुकाबले में पिछड़ने लगी। लगने लगा कि फिर वही कहानी दोहराई जाएगी, जहां नतीजे के रूप में हार रूपी कटु शब्द हमें हासिल होगा । लेकिन हमने कहा न ये सुबह इंतजार के बादलों को हटाने की सुबह थी। हम मास्को से निकलकर आज टोक्यो में खड़े थे। 41 साल लग गए थे इस टीम को एक पोडियम से दूसरे पोडियम पर जाने के लिए। टीम ने खुद को संभाला, एक दूसरे को हौसला दिया और याद कराया कि जो सफर हमने तय किया है, उसने अब इंतजार की गुंजाइश बाकी नहीं रह जाती।

हाफ टाइम के बाद मैदान में लौटी टीम जैसे अलग ही ऊर्जा से लबरेज थी। उन्होंने अपनी गति और स्टिक को इतना तेज कर दिया था कि, विपक्षी भौचक्के से होकर बस देखते ही जा रहे थे। यूं लग रहा था मानों वो भी भारतीय हॉकी की परंपरागत शैली का एक हिस्सा बनने के लिए तैयार हो रहे हों। ये मुकाबला भले ही काँस्य पदक के लिए था, लेकिन मैदान में संघर्ष कर रहे हर एक शख्स को इसका इल्म था, कि ये काँस्य भविष्य के स्वर्णिम रास्ते का सबसे अहम दरवाजा है।

सालों के इंतजार और लंबे संघर्ष के बाद जब टीम का हर एक खिलाड़ी पोडियम पर खड़े होकर तिरंगे को ऊपर उठते देखेगा तो उन्हें अपने जेहन में वो सबसे भारी शब्द आज भी याद रखना होगा इंतजार जो दोबारा 41 साल जितना लंबा ना हो और पोडियम पर तिरंगा राष्ट्रगान की धुन के साथ ऊपर जा रहा हो।