दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का रहस्य? Deendayal Upadhyay Murder Mystery

बलराज मधोक ने आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख पर कई संगीन इल्जाम लगाए और उसमें सबसे गंभीर इल्जाम ये था, कि अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख ने दीनदयाल उपाध्याय की हत्या करवाई।

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दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का रहस्य? Deendayal Upadhyay Murder Mistry
Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया

जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का रहस्य?
Pt Deendayal Upadhyay Murder Mystery


आज बात जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कत्ल की। ये साल 1968 के जाड़े की बात है। बजट सत्र शुरू होने वाला था। बजट सत्र में पार्टी की क्या रणनीति रहे, इसको तय करने के लिए 11 फरवरी 1968 को जनसंघ के 35 सदस्यीय संसदीय दल की मीटिंग आहूत की गई। जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय 10 फरवरी को लखनऊ में अपनी मुंह बोली बहन लता खन्ना के घर पर रुके हुए थे।

तो ऐसा क्या हुआ कि दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ से दिल्ली के बजाय पटना की तरफ जाने लगे। पंडित दीन दयाल उपाध्याय के आखिरी दिनों का ब्योरा हमें हरीश शर्मा की किताब ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ से मिलती है। 10 फरवरी की सुबह 8 बजे लता खन्ना के घर पर दीनदयाल उपाध्याय के लिए फोन आया और लाइन के दूसरी तरफ बिहार के जनसंघ संगठन मंत्री अश्विनी कुमार थे। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय से पार्टी की प्रदेश कार्यकारणी की बैठक में शामिल होने का अनुरोध किया। दीन दयाल उपाध्याय ने दिल्ली फोन किया और सुंदर सिंह भंडारी से बात की और उसके बाद पटना जाने का निश्चय किया।

Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया
Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया

आनन फानन में पार्टी कार्यकर्ताओं ने पठानकोट सियालदाह एक्सप्रेस में उनके लिए टिकट बुक करवाया। प्रथम श्रेणी की बोगी के एक कंपार्टमेंट में उनको सीट मिली। टिकट नंबर 04348, शाम के सात बजे पठानकोट सियालदाह एक्सप्रेस लखनऊ पहुंची। दीन दयाल उपाध्याय को छोड़ने के लिए आए, उस वक्त की संविद सरकार में जनसंघ के उपमुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त और उनके साथ एमएलसी पीताम्बरदास थे। बोगी के कंपार्टमेंट की दूसरी सीट पर जियोग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारी एन पी सिंह जो पटना जा रहे थे। लेकिन एक और सवारी प्रथम श्रेणी की बोगी पर सवार हुई थी, उनका नाम गौरीशंकर राय था, और वो B कम्पार्टमेंट में थे, जो कांग्रेस के एमएलसी थे और पार्टी के काम से वो भी जा रहे थे।

ट्रेन लखनऊ से रवाना हुई। बाराबंकी, फैजाबाद, अकबरपुर और शाहगंज होते हुए जौनपुर पहुंची। जौनपुर में पंडित दीन दयाल उपाध्याय नीचे उतरे क्योंकि, जौनपुर के पूर्व महाराजा के सेवक कन्हैया उनसे मिलने आए थे। कन्हैया ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय को महाराजा का खत थमाया और तब दीनदयालजी को खयाल आया कि वो अपना चश्मा तो भीतर कंपार्टमेंट मे छोड़ आए हैं, कन्हैया और दीन दयाल अंदर आए। पंडित जी ने चश्मा लगाया खत पढ़ा और फिर कन्हैया से कहा कि मैं महाराजा को लिखित में जल्द जवाब भेजूंगा।

तभी ट्रेन ने सीटी बजा दी, कन्हैया नीचे उतरा और देखा की, प्लेटफार्म की घड़ी पर 12 बजकर 12 मिनट हो रहे थे। चूंकि ये गाड़ी पटना नहीं जाती थी, इसलिए इस डब्बे को दिल्ली हावड़ा एक्सप्रेस में जोड़ा जाना था। शंटिंग की इस प्रक्रिया में तकरीबन आधा घंटे का समय लगता था। सवा दो बजे गाड़ी मुगलसराय रेलवे स्टेशन पहुंची थी और दिल्ली हावड़ा एक्सप्रेस के वहां से रवाना होने का वक्त 2 बजकर 50 मिनट और सुबह 6 बजे इस गाड़ी को पटना पहुँचना था।

जब गाड़ी पटना पहुंची तो बिहार के जनसंघ नेता कैलाशपति मिश्र, पंडित जी को खोजते हुए बोगी में चढ़े लेकिन पंडित जी उन्हें वहां नहीं मिले। कैलाशपति मिश्र को लगा कि दीनदयाल दिल्ली चले गए हैं। इधर मुगलसराय रेलवे यार्ड पर लाइन से तकरीबन 150 गज दूर बिजली के खम्बा संख्या 1267 से तीन फीट की दूरी पर एक लाश पड़ी हुई थी।

रेलवे का लाइनमैन ईश्वरी दयाल इंस्पेक्शन पर निकला तो उसने लाश देखी। उसने इसके बारे में रेलवे के सहायक स्टेशन मास्टर को सूचित किया और पांच मिनट में वह भी पहुंच गए। उन्होंने अपनी कार्रवाई के रजिस्टर में लिखा “ऑल्मोस्ट डैड”। इसके बाद खबर की गई रेलवे पुलिस को, इत्तिला पाकर तकरीबन 3 बजकर 45 मिनट पर पहुंचे रेलवे पुलिस के दो सिपाही जिनके नाम अब्दुल गफूर और रामप्रसाद थे, थोड़ी देर में मौके पर रेलवे में दरोगा फतेह बहादुर सिंह भी पहुंच गए। उसके बाद इन्तजार होने लगा रेलवे पुलिस के डॉक्टर का जोकि 6 बजे के लगभग पहुंचे। उन्होंने शव का मुआयना किया और उसे आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया। कार्रवाई के रजिस्टर में वक्त 5 बजकर 55 मिनट दर्ज किया गया। हालांकि बाद में इसे काटकर 3 बजकर 55 मिनट कर दिया गया।

जब लाश का पंचनामा भरा गया तो शव से 4 चीजों की बरामदगी दिखाई गई। जिसमे एक प्रथम श्रेणी का टिकट, एक आरक्षण की पावती, एक घड़ी जिस पर नाना देशमुख लिखा था और कुल छब्बीस रुपये। शव को जांच के बाद धोती से ढक दिया गया था।

सुबह सवेरे लोगों की स्टेशन पर आमद बढ़ी। ऐसे ही एक व्यक्ति थे, रेलवे में काम करने वाले बनमाली भट्टाचार्य। जब उन्होंने लाश को देखा तो फौरन शिनाख्त कर ली। उन्होंने कहा कि ये तो दीनदयाल उपाध्याय हैं, लेकिन रेलवे के बाकी अधिकारी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे। बनमाली ने फौरन संघ के स्थानीय कार्यकर्ताओं को सूचित किया। जब वो पहुंचे तो इस बात की तस्दीक हो गई कि, ये जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीनदयाल उपाध्याय ही हैं। तकनीकी तौर पर इस चीज की पुष्टि के लिए टिकट के नंबर का आरक्षण की लिस्ट से मिलान भी कर लिया गया और उसके बाद जो भी सूचना संचार के माध्यम थे, उनके जरिये जनसंघ के बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को ये खबर भेजी जाने लगी।

जब दिल्ली हावड़ा एक्सप्रेस साढ़े नौ बजे के लगभग मोकामा रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो पहले दर्जे की बोगी पर सवार एक सवारी ने रेलवे को कंप्लेन की, उन्होंने कहा कि एक सीट के नीचे लावारिस सूटकेस रखा हुआ है। बाद में पता चला कि ये सूटकेस पंडित दीनदयाल उपाध्याय का था। पुलिस ने जांच शुरू की तो उसे पहला सुराग एमपी सिंह जो कंपार्टमेंट ए में दीनदयाल उपाध्याय के सहयात्री थे, उनके बयान से मिला। एमपी सिंह ने बताया कि जब मुगलसराय गाड़ी पहुंची तो वो टॉयलेट के इस्तेमाल के लिए बाहर निकले। रास्ते में उन्हें पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सामान समेट कर ले जाता एक नौजवान दिखा। उन्होंने जब इस बारे में पूछा तो वो बोला कि, पिताजी को यहीं उतरना था, इसलिए मैं बिस्तर समेट कर ले जा रहा हूं। पुलिस ने उस लड़के को खोज निकाला। उसका नाम लालता था। उसने अपने बयान में कहा कि मुझसे राम अवध ने कहा कि, फलाने सीट पर एक लावारिस बिस्तर पड़ा हुआ है उसे उठा लाओ, मैं उठा ले गया और चालीस रुपये में किसी अनजान आदमी को बेच दिया। इसी तरह से भरत नाम के सफाई कर्मचारी के पास पंडित जी की जैकिट बरामद हुई।

देश के एक बड़े राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हत्या हुई थी। सियासी सरगर्मी तो तेज होनी ही थी, ऐसे में जांच करने वाली पुलिस के ऊपर भी दबाव बढ़ता जा रहा था। 13 फरवरी 1968 तूफान एक्सप्रेस में दिल्ली हावड़ा एक्सप्रेस के उस डब्बे को जोड़ा गया और उसे वापस मुगलसराय लाया गया। इसकी फोरेंसिक जांच के लिए दिल्ली और कलकत्ता से विशेषज्ञ बुलाए गए। उन्हें सिर्फ उस बोगी के ट्वायलेट में फिनायल से भरे हुए टूटे कुल्हड़ मिले। इसके अलावा कुछ ऐसा नहीं मिला जिसे सबूत के तौर पर जांच दल के सामने पेश किया जा सके।

सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था। ऐसे में जांच को रेलवे पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया। इसी बिंदु से इस केस के तार उलझने शुरू हो जाते हैं। सीबीआई को रेलवे के एक कंडक्टर ने एक बयान दिया, उसने बताया कि मेजर शर्मा पहली श्रेणी के बोगी में सवार थे और उन्होंने कहा था कि जब बनारस आ जाए तो मुझे उठा देना। जब रेलवे का कंडक्टर मेजर शर्मा को उठाने गया तो उसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शॉल पहने एक आदमी नज़र आया और उसने रेलवे के कंडक्टर से कहा मेजर शर्मा तो उतर चुके हैं, डब्बे मैं अब कोई नहीं है।

दो बयान और दर्ज हुए। पटना स्टेशन के जमादार भोला का बयान। उससे एक आदमी ने बोगी से उतर के कहा कि, फलाने सीट को अच्छे से साफ कर दो। भोला ने कहा माना, लेकिन जिस आदमी ने ये निर्देश दिया था, वो कम्पार्टमेंट में दोबारा नहीं आया। इसके अलावा मुगलसराय के रेलवे यार्ड के पोर्टर ने कहा कि, एक अनजान आदमी ने उसे 400 रुपये का प्रलोभन दिया। शर्त यह रखी कि तुम्हें रेलवे यार्ड में बोगी को आधा घंटा ज्यादा रोककर रखना है। सीबीआई ने इस केस के ब्योरे अपनी वेबसाइट पर दिए हैं। उनके मुताबिक पांच दिनों में पहला सुराग मिला और दो हफ्ते में केस सुलझा लिया गया।

तो कैसे सुलझाया सीबीआई ने ये केस, दो लोगों को पेश करके। पहला, राम अवध जिसने लालता से बिस्तर समेटने को कहा था और दूसरा भरत जिसके पास पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जैकेट और कुर्ता बरामद हुआ था। दोनों को अभियुक्त बना कर पेश कर दिया गया। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या का मुकदमा बनारस के विशेष जिला एवं सत्र न्यायालय में चला। 9 जून 1969 को सेशन जज मुरलीधर ने अपना फैसला सुनाया। सीबीआई के मुताबिक दो अभियुक्त थे और सीबीआई के पास आधार था, उनके इकबालिया बयान का। लेकिन मुरलीधर सीबीआई की दलीलों से पूरी तरह सहमत नहीं थे। उनके सामने एमपी सिंह का बयान भी था, जो ऐसी किसी भी घटना से इनकार कर रहा था, जिसमें स्नैचिंग या लूट या लूट के विरोध की सीबीआई थ्योरी की पुष्टि हो। सीबीआई के मुताबिक अभियुक्तों ने चोरी और लूटपाट की दृष्टि से दीनदयाल उपाध्याय का सामान लिया और दीनदयाल उपाध्याय के विरोध करने पर उनको चलती ट्रेन से धक्का मार दिया। लेकिन लालता का बयान इस बयान की तस्दीक नहीं कर रहा था, क्योंकि लालता ने जब बिस्तर चुराया था तब ट्रेन यार्ड में नहीं बल्कि प्लेटफार्म पर खड़ी थी। यानी कि तब तक दीनदयाल उपाध्याय का कत्ल हो चुका था। सेशन जज के सामने सीबीआई इस बात की भी कोई सफाई पेश नहीं कर पाई कि, दीनदयाल उपाध्याय की लाश की मुट्ठी में बचा हुआ पांच रुपये का नोट था, वह किस वजह से था और भी कई सवाल थे।

ऐसे में उन्होंने ये फैसला दिया कि, हत्या के मामले में किसी न्यायपूर्ण निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता है, लेकिन चोरी के मामले में सजा जरूर दी गई। हत्या के मामले में राम अवध और भरत दोनों को बरी कर दिया गया लेकिन, भरत पहले भी चोरी के मामले में जेल जा चुका था। इस मामले में भी उसे चार साल की सजा सुनाई गई। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या जनसंघ के शीर्ष नेतृत्व लिए एक झटका थी, और इसके बाद जनसंघ की आपसी सिर फुटव्वल भी तेज हो गई।

Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया
Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया

दीनदयाल उपाध्याय के बाद उनके सचिव के तौर पर अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया। चार साल तक उन्होंने पार्टी की कमान संभाली और 1973 के कानपुर अधिवेशन अपने सचिव रहे लालकृष्ण आडवाणी को कमान दे दी। जनसंघ के एक और बड़े नेता बलराज मधोक जो लगातार अपनी उपेक्षा देख रहे थे। कानपुर अधिवेशन में उन्होंने आर्थिक दृष्टिकोण को लेकर एक पर्चा पेश किया, जिसमें जनसंघ के नेतृत्व की आर्थिक नीतियों की आलोचना की गई। और भी कई मामले थे, जिनको ध्यान में रखते हुए अनुशासन का हवाला देकर लालकृष्ण आडवाणी ने बलराज मधोक को पार्टी से निकाल दिया। उसी पार्टी से बलराज मधोक जिसके संस्थापक सदस्य थे और जिसका संविधान बनाने वालों में से एक थे और इसके बाद बलराज मधोक ने आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख पर कई संगीन इल्जाम लगाए और उसमें सबसे गंभीर इल्जाम ये था, कि अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख ने दीनदयाल उपाध्याय की हत्या करवाई।

Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया
Deendayal Upadhyaya | जनसंघ के अध्यक्ष की मौत के बाद अटल ने क्या किया

बलराज मधोक ने अपनी आत्मकथा जिन्दगी का सफर के तीसरे खंड में ये सारी बातें लिखी हैं। उनके मुताबिक 1967 के चुनाव में जनसंघ को नौ फीसदी से ज्यादा वोट मिले। पैंतीस से ज्यादा सांसद जीत कर आए। इसके बावजूद दीनदयाल उपाध्याय ने अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख को पार्टी के अहम पदों से दूर रखा। बलराज मधोक को बढ़ावा दिया और इससे ये दोनों नेता नाराज हो गए। जिसकी परिणति भाड़े के हत्यारों द्वारा किए गए इस कृत्य के रूप में सामने आई। लेकिन बलराज मधोक ने ये सारी बातें पार्टी से निकाले जाने के बाद कही और किसी ने भी उनके बयान को गंभीरता से नहीं लिया। बलराज मधोक ने अपनी किताब में जनसंघ के नेताओं पर और भी कई इल्जाम लगाए जिनसे कुछ दिनों के लिए तो सनसनी मची। लेकिन उससे आगे कुछ भी नहीं हुआ। सबको लगा कि ये नाराज आदमी है, जिसको पार्टी की भीतर कोठरी से बाहर कर दिया गया है, इसलिए ये सब कह रहा है। बलराज मधोक ने अपनी बात के एवज में जो तर्क पेश किया उसमें एक ये भी था कि, सुब्रमण्यम स्वामी वही स्वामी जो मोदी राज में भी लगातार खबरों में रहते हैं, उस वक्त मुम्बई की एक सीट से चुनकर लोकसभा पहुंचे थे, जब उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार से दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की जाँच के लिए आग्रह किया तो उस वक्त के विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने रसूख का इस्तेमाल करके जाँच के मामले को ठंडे बस्ते में डलवा दिया।

बलराज मधोक के इल्जाम तो कई बरस बाद सामने आने थे, लेकिन हत्या के एक महीने के भीतर ही एक आदमी ने ये इल्जाम लगाया कि, दीनदयाल उपाध्याय की जानबूझ कर हत्या की गई है, और जो दो अभियुक्त पेश किये जा रहे हैं वो सिर्फ चेहरा हैं, उसके पीछे की साजिश सामने नहीं आई और ये इल्जाम लगाने वाला वही शख्स था जिस पर बलराज मधोक आगे चलकर हत्या का इल्जाम लगाने वाले थे। ये व्यक्ति थे, जनसंघ के नेता नानाजी देशमुख, जिन्होंने 25 मार्च 1968 को नागपुर में ये बात कही। नानाजी देशमुख के मुताबिक दीनदयाल उपाध्याय के पास कुछ गोपनीय दस्तावेज थे, जिससे सरकार के भ्रष्टाचार के सामने आने का अंदेशा था और इन्हीं गोपनीय कागजों को हासिल करने के लिए उनकी हत्या कर दी गई। अटल बिहारी वाजपेयी 11 फरवरी को बजट सत्र की जो मीटिंग बुलाई गयी थी, उसमें भाग लेने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी अपने घर से रवाना हो चुके थे। घर पर फोन किया गया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु के बारे में बताया गया। अटल बिहारी वाजपेयी का खानसामा बिरजू पीछे से लपका, लेकिन तब तक अटल बिहारी मीटिंग के लिए निकल चुके थे। उसने मीटिंग स्थल पर पहुँच कर वाजपेयी को यह सूचना दी और बीच मीटिंग में वाजपेयी फूट फूटकर रोने लगे ।

तो क्या अदालत के फैसले को सबने मान लिया, नहीं। 23 अक्टूबर 1969 को जस्टिस वाय वी चंद्रचूड़ के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग बनाया गया जिसका काम था, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की जाँच करना। ये आयोग, 70 सांसदों का जब प्रतिवेदन मिला इंदिरा गाँधी की सरकार को, जिसमे ज्यादातर विपक्षी दलों के सांसद थे, उनकी मांग पर बनाया गया था। जस्टिस चंद्रचूड़ के आयोग ने सीबीआई के निष्कर्षों से सहमति जताई और कहा कि, छीना झपटी और लूटमार के चलते ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या हुई। लेकिन जनसंघ ने इस फेसले को नहीं माना। उसके बाद से दीनदयाल उपाध्याय की हत्या को लेकर कई थ्योरी चलती रही। कई बार जाँच की मांग हुई, लेकिन सरकारी ढंग से कोई फैसला नहीं हुआ और दीनदयाल उपाध्याय की हत्या आज भी देश का बड़ा राजनीतिक रहस्य बनी हुई है।

ये पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एक कत्ल की कहानी है। जब दीनदयाल उपाध्याय का कत्ल हुआ और उसके बाद कानपुर में एक सभा हुई। चूंकि दीनदयाल उपाध्याय कानपुर के विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म कॉलेज यानि एसडी कॉलेज से जुड़े हुए थे, सभा हुई तो वहां पर संघ और जनसंघ के नेता जुड़े और तब ये फैसला लिया गया कि एक दीनदयाल मर गया तो क्या हुआ। हम एक ऐसी संस्था बनाएंगे जिससे हर साल सैकड़ों दीनदयाल निकलें। इस संकल्प के साथ कानपुर के समाजसेवी बैरिस्टर नरेंद्र जीत सिंह ने एसडी कॉलेज के बगल में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर विद्यालय शुरू करने का संकल्प लिया।