वैज्ञानिक जो सिस्टम के खिलाफ लड़ा : नांबी नारायणन |

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वैज्ञानिक जो सिस्टम के खिलाफ लड़ा : नांबी नारायणन |
वैज्ञानिक जो सिस्टम के खिलाफ लड़ा : नांबी नारायणन |

वैज्ञानिक जो सिस्टम के खिलाफ लड़ा : नांबी नारायणन |


1994 में इसरो के साइंटिस्ट, जो क्रायोजनिक प्रोजेक्ट को हेड करते थे। क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट इसरो की रॉकेट इंजन को लॉन्च वाला हिस्सा होता है और वहां पर नांबी नारायणन काम करते थे। इस प्रोजेक्ट पर नारायणजी डाइरेक्टर के तोर पर काम कर रहे थे। क्रायोजनिक प्रोजैक्ट में इसरो का बहुत कंट्रीब्यूशन था।

इस दौरान 1994 में अक्तूबर महीने में इंडिया में मालदीव नैशनल की मरियम रशीदा को अरेस्ट कर लिया जाता है। इनके पास कुछ ऐसे डॉक्युमेंट मिलते हैं, जो इसरो की सारी रिसर्च, कुछ ड्रॉइंग, इसरो मे रॉकेट इंजन्स कैसे बनते हैं, जो भी इसरो के राज हंक इसरो के कुछ डॉक्युमेंट्स में इनके पास मिले और मरियम रशीदा पर आरोप लगता है कि, ये सारी ड्रॉइंग पाकिस्तान को बेचना चाहती है। मतलब के इसरो की जो रिसर्च और कई सालों की मेहनत पाकिस्तान को बेचने की कोशिश करती थी ये इन पर आरोप लगता है।

उसके अगले ही महीने अक्टूबर के बाद नवंबर महीने में नांबी नारायणनको अरेस्ट कर लिया जाता है। एक बहुत बड़े साइंटिस्ट डायरेक्टर ऑफ क्रायोजेनिक प्रोजेक्ट को अरेस्ट कर लिया जाता है, कुछ और लोगो को भी अरेस्ट कर लिया जाता हैं। एसके शर्मा एक लेबर कॉन्ट्रैक्टर और मरियम रशीदा इनकी एक हैंडलर भी मान जाती उस वक्त फौजिया हसन को भी अरेस्ट कर लिया जाता हैं। और इन पर आरोप लगता है कि, ये सब मिले हुए हैं।

मरियम रशीदा इसरो की कई सालों की मेहनत पाकिस्तान और और बाकी कंट्रीज को बेचना चाहती थी। एक बहुत ही संगीन जुर्म है, और सीधा नारायणजी को जेल में भेजा दिया जाता है। मगर इस दौरान जब इन्वेस्टिगेटिव एजंसी नारायणजी का घर तलाशती है, तो कुछ ऐसा एविडेंस नहीं मिलता है कि इन्होंने करप्शन मे कभी कुछ पार्ट लिया होगा या फिर उन्हें कहीं से कुछ रिश्वत ली है। मगर तब भी इनको 50 दिन जेल में बिताने पड़ते हैं और नारायणजी से इंटेलिजेंस ब्यूरो और स्टेट पुलिस काफी इनसे काफि पूछताछ कि।

1970 के टाइम में नांबी नारायणन ने इंडिया में लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नोलॉजी बनाई और इन्होंने उसी वक्त देख लिया था कि आने वाले टाइम में अगर इंडिया का सिविलियन स्पेस प्रोग्राम मे लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नोलॉजी की आवश्यकता होगी। इस वजह से उस वक़्त के इसरो के चेयरमैन सतीश धवन इनको काफी हद तक प्रेस करते थे और करते लेकिन इन्होंने काफी कॉन्ट्रिब्यूशन किया है।

1996 में सीबीआई ने जांच पड़ताल करी और पाया कि कुछ हुआ ही नहीं था। इसरो के राज नहीं बेचे गए थे, कोर्ट सीबीआई कि रिपोर्ट सबमिट कर लेती है और नारायणजी उनको डिस्चार्ज कर दिया जाता है। अब यहां नांबी नारायणन जी कहते हैं कि मुझे कुछ मुआवजा दो। आप लोगो ने मेरे साथ किया है, मेरा नाम खराब हुआ, मेरी फैमिली को इतना सफर करना पड़ा बिना वजह।इसके लिए ये नैशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन में गए और तब से उन्होंने काफी कोशिश करी के कुछ इनको जस्टिस मिले। 14 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा की इनको 50 लाख रुपए कंपनसेशन मिलने चाहिए।

इतने बड़े साइंटिस्ट को जेल हो गई एक नकली सा केस बना। इसरो का काफी नुकसान हुआ । सवाल पूछे जाएंगे कि क्या यहा बाहरी ताकतों का कुछ रोल था। इस दौरान जब यहां पर केस सुप्रीम कोर्ट मे चल रहा था। एक इंटरव्यू में इंटरव्यूअर ने एक सवाल पूछा कि जब ये स्पाई के सामने आया उस वक्त आपने सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी सीआईए जो अमेरिका की है उनके बारे में कहा के ये इन्वॉल्व हो सकती है। तो जवाब देते हुए नांबी नारायणन जी ने कहा मैंने सीआईए का नाम लिया नहीं था। मैंने कहा कि कोई बाहर की ताकत कोई फॉरेन पावर इनवॉल्व हो सकती है जो दूसरों का नुकसान करना जानती थी।

उस वक्त के प्राइम मिनिस्टर पीवी नरसिम्हा राव जी ने पार्लियामेंट में कहा कि कोई फॉरेन पावर इनवॉल्व हो सकती है।
इसरो एक प्रोजेक्ट पर काम करने वाला था जो 1999 में ख़त्म हो जाता। मतलब दुनिया को बहुत जल्दी इसरो की ताकत का पता चल जाता लेकिन ये करीब 14 साल लेट हो गया। 1999 मे ही दुनिया को पहला जता के इंडिया सैटलाइट लॉन्च कर सकता है और इंडिया के पास कमाल के रॉकेट हैं।

अब हम समझ सकते हैं कि पर्दे के पीछे एक अलग कहानी चलती उसमें कैसे फ्रांस, यूएस, रशिया बड़े कंट्रीज इन्वॉल्व थे। 1992 में इंडिया ने रशिया के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया था जिसमें रशिया ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी क्रायोजनिक बेस फ्यूज काम मे लेगा। इससे रॉकेट इंजन को बहुत ताकत मिलने वाली थी। ये एग्रीमेंट 235 करोड़ रुपये मे साइन किया। यूएस और फ्रांस वर्ष यह टेक्नोलॉजी 950 और 650 करोड़ रुपये मे इंडिया को ये टेक्नोलॉजी ऑफर कर रहे थे। और इंडिया ने इन से नहीं खरीदी और अब उनका नुकसान होगा इसके बाद USA शांत बैठेगा नहीं।

उस वक्त के राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने उस वक़्त रशिया को चिट्ठी लिखी थी और इण्डिया में धमकी दी थी कि ये टेक्नोलॉजी इण्डिया को मत भेजो। आप अगर ये टेक्नोलॉजी इण्डिया को बेचेंगे तो बहुत सारे इंटरनैशनल ग्रुप्स से हम आपको बाहर निकालेंगे अगर आपने इंडिया को ये टेक्नोलॉजी बेची। उस वक्त रशिया के ने बोरिस येल्तसिन थे और ये अमेरिका के अंडर प्रैसर मे आ गए और इन्होंने इंडिया को टेक्नोलॉजी बेचने से मना कर दिया।

मगर इंडिया ने अगर हार नहीं मानी। इण्डिया ने फिर एक अलग से टेंडर निकाला इंडियन और रूसी मिलके क्रायोजनिक इंजन इण्डिया के लिए बना सकते हैं जिसे इंडिया का काम कंप्लीट हो जाता। मगर प्रॉब्लम यहा पर ये थी के USA ये भी नहीं चाहता था और इस नरायन जी के साथ जो भी हुआ ये फ्रान्स ने किया या USA ने किया किसने किया 1994 मे इण्डिया नया टेंडर फिर से निकालता है। फिर से वो टेक्नोलॉजी को एक्वायर करने की कोशिश करता है तो एक बाहर की ताकत यहा पर ऐसे रोल निभाती है, ये जो क्रायोजेनिक डिपार्टमेंट के मेन हेड थे उनको ही जेल में दो तीन साल के लिये भेज दिया ताकि ये पूरा प्रोजेक्ट लेट हो जाये और इंडिया इस टेक्नोलॉजी का कुछ कर भी ना पाए।