इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी के जीवन की पूरी कहानी |
Indira Gandhi Life Story
इन्दिरा गांधी जिनका जन्म 19 नवंबर 917 को इलाहाबाद के स्वराज भवन में हुआ। इनके पिता जी का नाम पंडित जवाहरलाल नेहरू , माता जी का नाम कमला नेहरू था जब इनके दादाजी मोतीलाल नेहरू को पहली बार देखकर इनका नाम इंद्रा रखा, और इनके पिता ने पहली बार देखकर प्रियदर्शिनी रखा। इस तरह पूरा नाम इन्दिरा प्रियदर्शनी हुआ।
नेहरूजी के परिवार मे तीन लोग रहा करते थे नेहरूजी, कमलाजी, और उनकी इकलौती बेटी इंदिराजी। उन दिनों देश की आजादी में अपना योगदान देने के लिए नेहरूजी का समय घर से बाहर महात्मा गांधी के साथ बितता था। इस वजह से इन्दिरा गांधी को अकेले अपनी मां के साथ रहना पड़ता था और मां की तबीयत इतनी खराब रहती थी इसलिए उनका पूरा बचपन मां की सेवा में बीता था लेकिन फिर भी उन्होंने मां की सेवा करने का टाइम में ही वह कई सारी ऐसी किताबें पढ़ीं जो राजनीति से जुड़ी हों या फिर देश की आजादी मुझे घट रही हों उन सारी किताबों ने बहुत अच्छे से स्टडी किया।
28 फरवरी 1936 को उनकी माताजी का देहान्त हो गया और फिर भी उन्होंने उन चीजों को अपनी पढ़ाई को छोड़ा नहीं और उनकी पढ़ाई में लगातार रुचि बढती चली गई। उनकी पढ़ाई की तरफ रुचि को देख करके उनके पिताजी ने उनको ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने भेज दिया और जब वो चार साल बाद 1941 पढ़ करके वापस आईं तो उन्होंने अपने शादी के लिए एक लड़के को इंट्रोड्यूस किया जिसका नाम फिरोज जहांगीर था। लड़का पारसी समुदाय का था और इसी वजह से पिताजी ने उस रिश्ते से इनकार कर दिया क्यूंकि नेहरूजी एक ब्राह्मण समुदाय के थे और उन दिनों ऐसे रिश्तों को अनुमति नहीं मिलती थी और स्वयं नेहरूजी एक राजनीतिक करियर से जुड़े रहते तो उनको मालूम था कि, अगर मैं इस रिश्ते को हां करता हूं तो मेरे राजनीतिक करियर पर बहुत बड़ा दाग लग जाएगा, लेकिन इंदिराजी ने बहुत ही जिद की और उनकी जिद को देखते हुए नेहरूजी ने बोला कि, अगर आप महात्मा गांधी से इस बारे में बात करते महात्मा गांधी इस रिश्ते को अगर अलाऊ करते हैं तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी और इसी वजह से जब इंदिरा गांधी ने महात्मा गांधी से बात किया तो महात्मा गांधी जी ने न फिरोज जहांगीर को ऑफिशियली अडॉप्ट किया और फिर जाकर इन्दिरा गांधी की शादी कराई। तो इस तरह से इंद्रा नेहरू से इंदिरा गांधी बनीं।
शादी के बाद दोनों कश्मीर गये मगर वहां से जब वापस आए तो अंग्रेजों ने उन्हें 13 महीनों के लिए नैनी जेल में बंद कर दिया। एक नई लड़की जिसने भी अपना पारिवारिक जीवन शुरू ही किया था उसको बंदी बनाकर 13 महीनों के लिए जेल बंद कर दिया गया है। लेकिन ये इन्दिरा गांधी का जीवन का सबसे बड़ा मोमेंट होने वाला था। इन 13 महीनों ने इनके जीवन पर ऐसा प्रभाव डाला कि साधारण इन्दिरा गांधी से दा इन्दिरा गांधी बनने के सफर में निकल चुकी थीं।
जेल से निकलने के बाद समय बीतता गया और उनके दो बच्चे हुए राजीव गांधी जी और संजय गांधीजी और फिर 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ। नेहरू हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री बने और उसी दौरान फिरोज गांधी जी को लखनऊ में नेशनल हेराल्ड डिपार्टमेंट में मैनेजिंग डायरेक्टर की पदवी मिली और फिर इन्दिरा गांधी दिल्ली में अपने पिता जी के साथ पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए उसी के काम में लग गई।
लंबे समय से एक दुसरे से अलग रहने के कारण उनके आपसी पारिवारिक संबंध काफी बिगड़ने लगे थे और उन चीजों को सही करने वो वापस लखनऊ भी काफी लंबे समय तक रहीं, जब उनको लगा सबकुछ ठीक हो चुका है तब जाकर वो दिल्ली गईं और दिल्ली में वो अध्यक्ष पद के लिये पार्टी चुनाव में जीती भी और उसी समय उनके पिताजी ने फिरोज गांधी जी को टिकट दिया और काफी अच्छे वोटों से वो जीत भी हासिल किए।
समय को ये भी खुशियों की मंजूर नहीं थी। अचानक हार्ट अटैक के कारण फिरोज खान की मृत्यु हो गई और इस सदमे से वो बाहर आयी थी कि अचानक 1962 में चाइना वॉर छिड़ गया जिसकी वजह से नेहरूजी के पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा और इस प्रभाव के कारण उनकी भी अचानक मृत्यु हो गयी।
दो लगातार मृत्यु देखने के बाद उनकी आंखों से आंसू सूख चुके थे और इसी वजह से वो और भी अधिक अकेले रहने लगी थी। नेहरूजी के जाने के बाद लालबहादुर शास्त्री हमारे देश के एक्टिंग प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अपनी कैबिनेट में इन्दिरा गांधी को ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्टर बनाया और कुछ समय बाद में लालबहादुर शास्त्री जी की मौत हो गई और फिर कांग्रेस में अचानक एक नए चेहरे की तलाश शुरू हो गई कि अगला प्रधानमंत्री का दावेदार कौन होगा। और इसी वजह से कुछ लोगों ने इंदिरा गांधी जी के चेहरे को आगे रखा और काफी बड़े दिग्गज नेताओं ने ये कहा इन्दिरा गांधी का नाम सही नहीं होगा क्योंकि उनका ना ही कोई पॉलिटिकल करियर ना ही कोई पब्लिक नॉलेज। इसी वजह से मोरारजी देसाई जैसे बड़े दिग्गज नेता ने भी ये कहा कि गूंगी गुड़िया है लेकिन जनता का नेहरू परिवार के प्रति प्यार देखते हुए इंदिरा गांधी जी के नाम को ही आगे रखा गया और जब चुनाव हुआ तो ये बिल्कुल उनका सुझाव सही साबित हुआ और सरकार काफी बड़े बहुमत पाते हुए सत्ता में आई और फिर इंदिरा गांधी जी हमारे 24 जनवरी 1966 को पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
जब प्रधानमंत्री बने देश के बहुत सारे दिग्गज नेता को ही लगता था कि वो ऐसे एक फेस के तरह प्रधानमंत्री बनी हैं और अभी भी पार्टी दिग्गज नेताओं के द्वारा ही चलायी जाएंगी। लेकिन जिस तरह इन्दिरा गांधी ने सत्ता अपने हाथ में लिया ।
इनके कामों को देख कर के बहुत सारे के पार्टी के अंदर के लोग ही इनका साथ होना शुरू कर दिए थे लेकिन ये उस समय की हार नहीं मानी। यह बहुत सारे दलों के साथ अपना गठबंधन किया अपने सरकार को आगे बढ़ाया। उन दिनों देश अब हमारा आजाद हुआ था तो बहुत सारी सैकड़ों एकड़ जमीन किसी एक हाथों में हुआ करती थी जिसे हम जमींदारी कहते हैं और उन्हीं की वजह से ये छोटे बड़े किसान उनकी जमीन होते हुए भी उनकी जमीन नहीं थी वो किसी और के अधिकार में हुआ करती थी और जो भी किसानी अच्छा पैदावार करते थे वो उन जमींदारों के हाथ जाया करता था जिसके कारण देश की अर्थव्यस्था कुछ चुनिन्दा हाथों के अंदर कैद थी और देश के किसान उनके कुछ नहीं मिल पाया था। इसी वजह से इंदिरा गांधी ने इन चीजों को देखते हुए भूमि सुधार नियम को आगे बढ़ाया और जिसकी वजह से देश के किसान व छोटे छोटे को उनके अधिकार की जमीन मिलना शुरू हुई और देश कि अर्थव्यवस्था एकदम से छोटे छोटे किसानों से आगे बढ़ना शुरू हुए और उस जमाने में जो बैंकिंग सुविधाएं हुआ करती थी उसे बड़े बड़े लोगों की बनी मिली। जैसे जो बड़े उद्योपतियों या फिर बड़े किसान। जब इन्द्राज ने इन चीजों को देखा तो सबसे पहले उस जमाने के 14 बड़े बैक का राष्ट्रीयकरन किया, जिसके बाद जो देश गरीब जनता थी वो भी बैंको से कनेक्ट हो सके और बैंकिंग सुविधाएं उठा सकें।
फिर उन्होंने ग्रीन डोनेशन के पर खासा जोर दिया। जिसके बाद जो देश हमारा अमेरिका से इम्पोर्ट किया करता था खाद पदार्थ आज वो एक्सपोर्टर बनकर उभर के सामने आया।
अब दोबारा लोकसभा चुनाव की बारी थी तो इन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया और ये नारा काफी ज्यादा पॉपुलर भी हुआ और देश ने इनको फिर से 352 सीट के साथ इन्दिरा गांधी को दुबारा प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला।
पाकिस्तान 3 दिसंबर 1971 को भारत पर अटैक कर दिया। इन्दिरा गांधी के लीडरशिप में पाकिस्तान पर चढ़ाई की और उनके 93 हजार सैनिकों को बंदी बना लिया जिसके बदले भारत ने पूरी पाकिस्तान को आजाद किया और बांग्लादेश नाम से एक नए देश की स्थापना की और ये यहां नहीं रुकीं। इन्होंने अमेरिका को सबक सिखाने के लिए रूस के साथ अपने संबंध अच्छे किये और देश को महाशक्ति बनाने के लिए इन्होंने 18 में 1974 को परमाणु परिक्षण किया और साबित कर दिया कि हम किसी से डरने वाले आगे झुकने वाले नहीं हैं।
इनके इन्हीं एक्शन को देख करके अटलबिहारी वाजपेयी तो ये भी कह दिया कि एक दुर्गा का अवतार है लेकिन अब इंद्रागाँधी जी ने रायबरेली से श्री राम राज्य के खिलाफ चुनाव लड़ा था और काफी अच्छे वोटों से जीती भी थी, लेकिन राम को लगा था कि उन्होंने उस चुनाव में धांधली की है और इसी के खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट में अपील भी किया था और जब हाईकोर्ट इलाहाबाद ने इन चीजों को पर जाँच किया तो कुछ गड़बड़ियां सच साबित हुईं और इसी वजह से इन्दिरा गाँधी जी को तुरंत सत्ता छोड़ने को कहा गया लेकिन इन्दिरा गाँधी जी सत्ता छोड़ने के लिए नहीं आई थीं उनको राजनीति कूटनीति और संविधान की इतनी जबरदस्त समझती कि उन्होंने देश पर विदेशी आक्रमण को दिखाते हुए 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित कर दिया और इस आपात काल में जो भी देश की सरकार के खिलाफ बात करता उसको तुरंत जेल में डाल दिया जाता और ये आपातकाल ढाई साल तक चला जिससे जनता बहुत बुरी तरह से त्रस्त हो गई और इसी जनता की त्रासदी को देखते हुए मोरारजी देसाई ने कई सारी छोटी पार्टियों से गठबंधन करके एक नई पार्टी जनतादल नाम से स्थापना की। और जब 1977 मे कांग्रेस खिलाफ चुनाव गया तो कांग्रेस बहुत बुरी तरह से हारी और जो सीट 352 के साथ वो सत्ता में आयी थी वो 153 पर सिमट गयी और अब मोरारजी देसाई नए प्रधानमंत्री बन के सामने है। लेकिन इस बार जो भी पार्टी सामने आयी थी जनता दल नाम से सरकार चलाने के लिए उनको ये जरूर मालूम था कि इन्दिरा गाँधी को कैसे हटाना है लेकिन देश कसे चलाना है ये किसी को भी नहीं पता था और इसी वजह से जनता भी बहुत ज्यादा परेशान थी और देश की अर्थव्यस्था लगातार डाउन होती चली जाती थी और जिसकी वजह से सरकार को बहुत ही जल्दी तीन साल मे गिराना पड़ा और फिर देश में नया लोकसभा चुनाव शुरू हुआ।
इस बार इन्दिरा गाँधी ने इंद्रा लाओ देश बचाओ का नारा दिया और ये नारा काफी सफल भी हुआ। देश ने समझा कि इन्दिरा गाँधी ही इकलौती ऐसी लेडीज देश को चला सकती है सही ढंग से। और इस बार के चुनाव में पिछले बहुमत 352 सीटों से भी ज्यादा 374 के साथ इन्दिरा गाँधी 1980 में दुबारा प्रधानमंत्री बनीं।
इस बार जब ये प्रधानमंत्री बनी तो काम करने का तरीका थोड़ा सा अलग था ये बदले की भावना से नहीं ये देश को आगे बढ़ाने की भावना से काम करना चाहती थी और उसी समय बेटे संजय गाँधी की प्लेन क्रैश में गिरने से मौत हो गयी और इसे ना चाहते हुए भी राजीव गांधी को सत्ता में इनको लाना पड़ा और राजीव गांधी अमेठी में गद्दार नेता शरद यादव के खिलाफ दो लाख वोटों से जीत भी हासिल है।
लेकिन उस दौरान पंजाब अलगाववाद की आग में काफी धधक रहा था इनके सबसे खास रहा जनरैल सिंह भिंडरावाला ने पंजाब के कई सारे नौजवानों को आतंकवाद की ओर आगे बढ़ा दिया था। इन्दिरा गाँधी फियरलेस, पावरफुल और पॉलिटिकल एक्सपर्ट थीं। उन्होंने 3 जून 1984 को ब्लू स्टार नामक ऑपरेशन स्टार्ट किया जिसमें अमृतसर के गोल्डन टेंपल जितने आतंकवादी थे उनको चारों तरफ से आर्मी ने ऑपरेशन ख्तम कीया।
इस ऑपरेशन के दौरान कई सारे निर्दोष सिख भी मारे गए जिसकी वजह से सिख समुदाय में इंदिरा गांधी को लेकर एक अलग लेवल पर आक्रोश था और इसी को देखते हुए उनके इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट ने इंदिरा गांधी के साथ खड़े सिख गार्ड को ड्यूटी से हटा दिया गया । लेकिन इंदिरा गांधी को ये बात बिल्कुल पसंद नही आयी। कुछ चुनिंदा लोगों की वजह से हम पूरे सिख समुदाय को गलत नहीं ठहरा सकते और उन्होंने सभी गार्डों को वापस अपनी ड्यूटी पर बुला लिया।
लेकिन इस के बाद से इंदिरा गांधी का मन काफी बेचैन रहने लगा था और वो हर अगली स्पीच में अपनी मौत का जिक्र करने लगी थी। जब ये अपने काम से वापस आ रही थी तो 31 अक्टूबर 1984 को इनकी सुरक्षा में खड़े दो गार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने इनको गोली मारकर के की हत्या कर दी। इस तरह से देश ने अपने पावरफुल लीडर को खो दिया।
इन्द्रा जी के कामों की वजह से ये आज भी राजनीति की दुनिया के सबसे बड़ी इंस्पिरेशन हैं और बहुत सारे नेता आए लेकिन जितने भी हैं कहीं ना कहीं वो सभी इंदिरा गांधी के बताए गए स्टेप्स को ही फॉलो करते हुए देश को आगे ले जा रहे हैं।