Kandahar Hijack Case : Indian Airlines IC814 की पूरी कहानी

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Kandahar Hijack Case : Indian Airlines IC814 की पूरी कहानी
Kandahar Hijack Case : Indian Airlines IC814 की पूरी कहानी

Kandahar Hijack Case : Indian Airlines IC814 की पूरी कहानी


24 दिसंबर 1999 क्रिसमस की पूर्व संध्या, नई सहस्राब्दी शुरू होने में सिर्फ 7 दिन बाकी थे। काठमांडू से दिल्ली जाने वाली इंडियन एयरलाइंस की IC 814 उड़ान में खुशनमां माहौल था, लोगों को ड्रिंक सर्व की जा रही थी। विमान को चला रहे थे कैप्टन देवीशरण, कॉकपिट में उनके साथ थे फ्लाइट इंजीनियर अनिल जागा और कोपायलेट राजिंदर कुमार। 4 बजकर 39 मिनट पर फ्लाइट पर सर अनिल शर्मा ने कॉकपिट में कॉफी और चाय सर्व की और बाहर आने के लिए दरवाजा खोला। “मैं कॉकपिट से बाहर आ रहा था तो मैंने देखा कि, एक नकाब पहने एक सज्जन सामने खड़े चश्मा लगाए हैं और एक ग्रे कलर का सूट पहना था, उनके हाथ में तांबा कलर की पिस्टल थी जो उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया”।

चीफ उर्फ इब्राहीम मकतब ने अनिल शर्मा को पीछे जाने के लिए कहा । उधर यात्रियों के केबिन में चार अब चालक बर्कत, डॉक्टर, भोला और शंकर भी हरकत में आ चुके थे। कुछ लोगों की समझ में नहीं आया कि ये क्या हो रहा है इसलिए वो वैसे ही बैठे रहे। अब चालकों ने उनके गाल पर थप्पड़ रसीद करने शुरू कर दिए। मिनटों में उन्होंने यात्रियों पर काबू पा लिया। उनकी सीटें बदल दी गयीं और उनके केबिन बैगेज को एक्जीक्यूटिव क्लास की सीटों पर पटक दिया गया।

कंधार हाईजैक जनवरी 1971 मे हुआ था
कंधार हाईजैक जनवरी 1971 मे हुआ था

उधर IC 814 से संदेश फ्लैश हुआ कि विमान का अपहरण कर लिया गया है। चीफ ने आदेश दिया कि विमान को लाहौर ले जाया जाए। कैप्टन शरण बोले हमारे पास एक घंटे का ईधन बचा है। उन्होंने जानबूझ कर विमान की गति धीमी कर दी। लाहौर से सूचना आई कि वो जहाज को वहां नहीं उतरने देंगे। कैप्टन शरण ने कहा कि हमें जल्द ही कहीं न कहीं लैंड करना होगा क्योंकि हमारा ईधन खत्म हो रहा है। केबिन क्रू चालकों को ये समझाने में सफल हो गया कि, अगर विमान को अमृतसर में नहीं उतारा गया तो वो क्रैश हो जाएगा। 7 बजकर एक मिनट पर IC 814 ने अमृतसर में लैंड किया।

उधर दिल्ली में बैठ चुके क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप से संदेशा गया कि विमान में ईंधन भरने में जितनी संभव हो उतनी देरी की जाए। विमान को अमृतसर में उतरे चालीस मिनट से ज्यादा बीत चुके थे और ईंधन का कहीं अता पता नहीं था। इस बीच अब चालकों ने इकॉनमी क्लास से कुछ यात्रियों को एक्जिक्यूटिव क्लास में लाकर उनके हाथ पांव बांध दिए थे। अब चालक नर्वस होने लगे थे। उन्हें डर था कि भारतीय सुरक्षा बल किसी भी क्षण विमान पर हमला कर सकते हैं। इतने में परकर कॉकपिट में घुसा। थोड़ी ही देर में चीखने फ्लाइट इंजीनियर चाबियां किस्से पर पिस्टल लगाकर उल्टी गिनती शुरू कर दी।इस पर भी पायलेट ने विमान नहीं उड़ाया तो वो जाकिया को एक्जीक्यूटिव क्लास मे ये दिखाने ले गए कि, यात्रीयो को मारना शुरू कर दिया हैं। उधर जब यात्री राजिंद्र डोगरा एक्जीक्यूटिव क्लास में पहुंची तो वहां पहले से ही तीन यात्री सीटों पर बंधे हुए थे।

जब ये तय हो गया कि, ईधन भरी जाने के आसार नहीं हैं और खून खराबा शुरू हो गया है तो कप्तान देवी शरण ने विमान को उड़ाने का फैसला किया। जैसे ही विमान सीमा के पास पहुंचा लाहौर ATC की चेतावनी गूंजी, पाकिस्तान में प्रवेश मत करो। हमारी हवाई सीमा में आते ही आपको मार गिराया जाएगा। पायलेट ने जवाब दिया हमारे ऊपर पिस्तौल लगी हुई है। चेतावनी के बावजूद लैंड करने के लिए छुपना शुरू किया। सिर्फ 300 फीट रह गई थी कि, सह चालक राजिंदर कुमार ने देखा कि वो तो सड़क पर उतरने वाले थे।

दूसरी तरफ़ कप्तान देवी शरण के मन में क्या चल रहा था उनकी जुबानी। “उस समय में हमारे पास दो ऐक्शन चल रहे थे। एक एक्शन ये कि, हमें रनवे नहीं मिला था और मेरा ट्रांसपोंडर ऑन था और ट्रांसपोंडर ग्राउंड एजंसी को हमारी हाइट और डायरेक्शन बताता है। तो जब मैंने उनको बोला कि, मैं इस प्लेन को क्रैश करने जा रहा हूं एक्चुअल मीनिंग वो नहीं था कि, मैं इस बार में क्रैश कर दूंगा क्योंकि हमारा ईंधन खत्म हो चुका था, तो मेरे को कहीं न कहीं ऐसी जगह चाहिए थी जो थोड़ी प्लेन हो ताकि अगर मैं इसको क्रैश लैंड करूं तो कम से कम पचास -सौ लोग बचा सके और बाकी को नहीं बचा पाएंगे तो नहीं बचा पाएंगे”। बहरहाल लाहौर में ईंधन भरा गया और यह तय किया गया कि विमान को दुबई ले जाया जाए। चूंकि काबुल में रात में विमान उतारने की सुविधा नहीं थी। दुबई पहुंचते पहुंचते रूपन कत्याल दम तोड़ चुके थे। अब चालकों में से एक फ्लाइट पर सर अनिल शर्मा के पास पहुंचा।

दुबई में विमान में फिर ईधन भरा गया। इसके बदले में अब चालकों ने 27 बीमार ,वृद्ध ,औरतों और बच्चों को छोड़ दिया। दुबई के समयानुसार सुबह साढ़े छह बजे विमान ने फिर उड़ान भरी। इस बार काबुल की तरफ़ जैसे ही विमान अफगानिस्तान की सीमा में घुसा काबुल ATC ने संदेश भेजा कि विमान को कंधार ले जाइए। 8 बजकर 10 मिनट पर विमान ने कंधार में लैंड किया।

इसके बाद छह दिनों तक एयर बस विमान इन यात्रियों की एक तरह से जैल बन गया। अचानक कभी इन यात्रियों से बहुत अच्छे से पेश आती तो कभी बहुत क्रूर हो जाते। 27 दिसंबर को बातचीत के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल कंधार पहुंचा। उसमें थे विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक काटजू और इंटेलिजेंस ब्यूरो के आला अधिकारी अजित डोवाल। काटजू ने तालिबान से बातचीत शुरू की तो डोभाल ने चालको से। लेकिन वहां पर सबसे ज्यादा दिक्कत थी खाने की और शाकाहारी लोगों के लिए तो सबसे बड़ी मुसीबत। 26 दिसंबर की रात को पहली बार खाना दिया गया कपूर्स और राजमा। और वो भी सिर्फ 50 लोगों के लिए।

हाईजैकर ने मांग रखी कि इन यात्रीयों के बदले भारत 36 चरमपंथियों को रिहा करे। भारत ने तर्क दिया कि वो एक गणराज्य है और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला इस बात के लिए राज़ी नहीं होंगे कि इन सब को छोड़ा जाए। अब चालकों की तरफ से तर्क दिया गया कि जब रूबिया सईद को छोड़ा गया था तब भी फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने संवादाता सम्मेलन कर हाईजैकर की मांगे बताई। वो मौलाना मसूद अजहर के अलावा उन्होंने 35 लोगों और एक आतंकवादी सज्जाद अफगानी की लाश और 20 करोड़ अमरीकी डॉलर की मांग की है। हम अपना रुख कंधार में बातचीत कर रहे दल को बता देंगे। इस बीच देश और अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इन मांगों पर विचार करे।

तालिबान के अनुरोध पर सज्जाद अफगानी की लाश भेजने की मांग वापस ले ली गई और अंततः तय हुआ कि भारत मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद सरकार और अहमद मुर्शीद को रिहा करेगा। 29 दिसंबर की रात को बर्गर ने घोषणा की बातचीत असफल हो गई है। 30 को सुबह आठ बजे उन्होंने चेतावनी दे दी कि अगर भारत का यही रवैया रहता है तो वो एक-एक कर यात्रियों को मारना शुरू कर देंगे। राजिंदर डोगरा को चेतावनी अभी तक नहीं भूलती ।
इतनी कठिन क्षणों के बीच कुछ हल्के फुल्के क्षण भी आए। एक नेपाली अभिनेता ने शोले की डायलॉग्स को वर्तमान परिपेक्ष्य से जोड़ा और उसे भूला कि गुस्से का शिकार भी होना पड़ा। कितना आदमी थे आज और वो 180 और आखिर 31 दिसंबर को संकेत आए कि भारत ने इन अब हाईजैकर की मांगे मान ली हैं। भारत की विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन बंदियों को अपने साथ लेकर कंधार पहुंची। बरकत ने इसकी सूचना विमान में सवार बंधकों को दी। जिस मुद्रा में अंपायर मैदान में चौकी का इशारा करते हैं उन्होंने आपस में एक दूसरे को गले लगाया और एक एक कर विमान से उतर गए।

184 घंटों तक हाईजैकर के कब्जे के बाद 155 लोग विमान से उतर रहे थे । सारे यात्रियों को इंतज़ार कर रही इंडियन एयरलाइन्स की एक दूसरी यात्री विमान में ले जाया गया। बहुतों ने पूरे सात दिन बाद भरपेट खाना खाया और पानी पिया।
अब सवाल उठता है कि क्या किसी स्टेज पर ये हाईजैकिंग विफल हो सकती थी। सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर अमृतसर में रहते ही कुछ कारवाई की जाती तो बंधकों को छुड़ाया जा सकता था। दूसरी तरफ उस समय के आतंरिक सुरक्षा के विशेष सचिव भी कौशल कहती हैं कि अमृतसर में विमान पर हमला करने के पर्याप्त साधन मौजूद नहीं थे।
कोशिश की गई को रोका जाए बट वहां पूर्व में अमृतसर में नहीं कंपनी वहां से उसको और करा के अपने गेम रहा को पर भी लेकिन उसमें भी था। फिर इस बात की भी आलोचना हुई कि भारत की विदेश मंत्री अपने विमान में चरमपंथियों को बैठाकर कंधार क्यूँ पहुंचाने गए। जसवंत सिंह ने अपनी किताब “कोल टू ओनर” में तर्क दिया कि वो इसलिए था कि, अंतिम समय पर कोई राजनैतिक फैसला करने की नौबत ना आ जाए।

ये पूरा प्रकरण कई अनुत्तरित सवाल छोड़ गया। क्या इस घटना का अंत कोई दूसरा हो सकता था। क्या भारत इस स्थिति में था कि, इन अब हाईजैकरकी मांग ठुकरा पाता। ये पहला मौका नहीं था जब भारत के विमान का अपहरण किया गया हो तब भी इन मामलों से निपटने के लिए भारत की निश्चित रणनीति क्यों नहीं है अब तक।