सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जीवनगाथा |
Biography of Emperor Prithviraj Chauhan
ऐतिहासिक फिल्मों का चलन शुरू हो गया और अब इस देश के महान शासक जो बारहवीं शताब्दी में उत्तर भारत के अजमेर और दिल्ली में राज करते थे। पृथ्वीराज चौहान एक ऐसा शासक जिसने मुहम्मद गोरी को 17 बार युद्ध में हराया। एक ऐसा शासक जिसका प्रेम भी अमर हुआ। एक ऐसा शासक जिसने मरते दम तक दोस्ती निभाई। एक ऐसा शासक जिसने दुश्मन की तलवार मार ना सकी।
पृथ्वीराज चौहान की कहानी में एक सुपरहिट फिल्म के तमाम मसाले हैं, इसलिए इस पर फिल्म बनाई जा रही हैं और आपको ये भी बता दे कि, हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान का ये किरदार अक्षय कुमार निभाएंगे।
पृथ्वीराज चौहान के जन्म को लेकर भी इतिहासकारों में अलग अलग मत हैं। पृथ्वीराज महाकाव्य के अनुसार उनका जन्म 1 जून 1163 को गुजरात राज्य के पाटन पतन में हुआ। वहीं कुछ इतिहासकारों के अनुसार चौहान का जन्म 1168में अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूर देवी के यहां गुजरात था। वो बचपन से ही प्रतिभाशाली बालक थे। उस वक्त चौहान वंश में छह भाषाएँ बोली जाती थीं। संस्कृत प्राकृत, मागधी, पैशाचि, शोरसेनी और अपभ्रंश भाषा इन छह भाषाओं पर पृथ्वीराज चौहान की काफी अच्छी पकड़ थी। इसके अलावा मीमांसा, वेदांत, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र की भी पढ़ाई । पृथ्वीराज चौहान संगीत, कला और चित्र बनाने में भी पारंगत हैं। इतना ही नहीं पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण छोड़ने में भी निपुण थे। वहीं शब्दभेदी बाण जो दशरथ ने श्रवण कुमार को मारा।
कहानी को बाल्यकाल से आगे बढ़ाते हैं। जब 13 साल के पृथ्वीराज चौहान हुये, उनके पिता की मृत्यु हो गई और वे अजमेर के राजगढ़ के राजसिंहासन पर बैठा दिया गया। पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी के किस्से में यह भी है कि, एक बार बिना किसी हथियार की मदद के उन्होंने शेर को मार गिराया था। उनकी बहादुरी के किस्सों को सुन कर पृथ्वीराज के दादा अंगा जो दिल्ली के शासक थे उन्होंने उन्हें दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली के राजसिंहासन की गद्दी पर विराजने के बाद ही किला राय पिथौरा का निर्माण किया था। 13 साल की उम्र में उन्होंने गुजरात के पराक्रमी शासक भीम देव को हरा दिया। पृथ्वीराज चौहान की पहचान उनके विशाल सेना के लिए भी होती थी। इतिहासकारों की मानें तो पृथ्वीराज की सेना में तीन सौ हाथ और तीन लाख सैनिक थे जिनमें बड़ी संख्या में घुड़सवार भी थे।
पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी।
वैसे तो पृथ्वीराज की प्रेम कहानी में एक ही रानी का जिक्र है लेकिन पृथ्वीराज रासो के अनुसार जब पृथ्वीराज चौहान 11 साल के थे तो उनकी पहली बार शादी हुई थी। उसके बाद हर साल 22 साल होने तक उनकी शादियां होती रहीं। इसके बाद जब 26 साल के हुए तो उनकी शादी संयोगिता के साथ हुई। इस हिसाब से उनके कुल 12 रानियां थीं। जिनमें से सिर्फ पृथ्वीराज रासो में 5 के ही नाम हैं। अब आपको पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी थोड़ी विस्तार से बता देते हैं। संयोगिता कन्नौज के शासक राजा जयचंद की बेटी थी। लेकिन आपको बता दें कि, पृथ्वीराज रासो को छोड़कर इतिहास में कहीं भी जयचंद की गद्दारी की कोई कहानी नहीं। जयचंद पर ये आरोप लगा था कि उसने मोहम्मद गोरी की मदद की थी। लेकिन ये सवाल उठता है कि, कोई अपनी बेटी का सुहाग ही भला क्यों उजाड़ दे। इस बात का कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है लेकिन ये कहा जाता है कि, कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता जब पृथ्वीराज चौहान को पसंद आई तो उसे स्वयंवर से उठा लिया और गंधर्व विवाह किया। इतिहासकारो ने कुछ जगह उल्लेख किया है कि, जब पृथ्वीराज चौहान वहां से संयोगिता के साथ भागने लगे। जयचंद ने अपने सिपाहियों को घेरा बनाकर उन्हें घेरने के लिए कहा और इन्हे घेर भी लिया लेकिन जब राजा जयचंद ने उन्हें देखा तो उस घोड़े पर आगे चौहान बैठे थे और पीछे संयोगिता। राजा जयचंद को यह समझने में देर नहीं लगी कि संयोगिता ने भी पृथ्वीराज चौहान का वरण किया। ऐसे में वो अपने दामाद को मार नहीं सकते।
इसके बाद की प्रेम कहानी की कुछ खास चर्चा नहीं है लेकिन मृत्यु के वक्त की चर्चा जरूर है कि, पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की मौत एकसाथ ही हुई, कैसे हुई थी?
अगर आप पहले पृथ्वीराज चौहान की वीरता की कहानी सुना देते हैं, लेकिन इसके पहले आपको एक और नाम को जान लेना होगा ये नाम है चंद्रवरदाई। चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान बचपन के मित्र थे जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की थी। पृथ्वीराज चौहान का साम्राज्य काफी तेजी से बढ़ रहा था, तब एक मुस्लिम शासक मोहम्मद गोरी की नजर भी दिल्ली पर पड़ी और उसने कई बार आक्रमण किए। अलग- अलग काव्यों में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच युद्ध की अलग- अलग संख्या हैं। पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज ने तीन बार गोरी को पराजित किया। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार पृथ्वीराज ने सात बार गोरी को बंदी बनाया। वहीं प्रबंधकोश के अनुसार पृथ्वीराज ने 20 बार गोरी को बंदी बनाकर छोड़ दिया। सुरजन चरित महाकाव्य के अनुसार 21 बार और प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार 23 बार पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को बंदी बनाया। लेकिन सबसे ज्यादा संख्या का ज़िक्र है वो है 18। 17 बार मुहम्मद गोरी पराजित हुआ और 18वीं बार पृथ्वीराज चौहान पराजित हो गया।
1191 में मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी ने बार -बार युद्ध करके पृथ्वीराज चौहान को हराना चाहा पर ऐसा न हो पाए। पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार मुहम्मद गोरी को युद्ध में परास्त किया और दरियादिली दिखाते हुए कई बार माफ भी किया और छोड़ दिया और 18वीं बार मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में मात दी और बंदी बनाकर अपने साथ ले गया। पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई दोनों ही बंदी बना लिए गए और सजा के तौर पर पृथ्वीराज की आँखे गर्म सलाखों से फोड़ दी गई। लेकिन यहां भी पृथ्वीराज चौहान ने हिम्मत नहीं हारी और मोहम्मद गोरी को मात देने की तैयारी करने लगे। मोहम्मद गोरी ने चंद्रवरदाई के द्वारा पृथ्वीराज चौहान की आखिरी इच्छा पूछने को कहा क्योंकि चंद्रवरदाई पृथ्वीराज चौहान के करीब था। पृथ्वीराज चौहान में शब्दभेदी बाण छोड़ने के गुण भरे पड़े। यह जानकारी मोहम्मद गोरी तक पहुंचाई गई जिसके बाद उन्होंने कला प्रदर्शन के लिए मंजूरी भी दे दी। पृथ्वीराज चौहान अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले थे। वहीं पर मोहम्मद गोरी भी मौजूद था। गोरी को मारने की योजना चंद्रवरदाई के साथ मिलकर पृथ्वीराज चौहान ने पहले ही बना ली थी। जैसे ही महफिल शुरू होने वाली थी चंद्रवरदाई ने काव्यात्मक भाषा में एक पंक्ति कही।“चार बास चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान”। ये दोहा चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए कहा था। जैसे ही इस दोहे को सुन कर मुहम्मद गोरी ने शाबाश बोला वैसे ही अपनी दोनों आंखों से अंधे हो चुके पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार डाला। वही दुखद ये भी हुआ कि, जैसे ही मोहम्मद गोरी मारा गया उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुविधा से बचने की खातिर एक दूसरे की हत्या कर दी।
इस तरह पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया। वही जब पृथ्वीराज के मरने की खबर संयोगिता ने सुनी तो उसने भी अपने प्राण ले लिए। इस तरह से एक ही दिन चार लाशें बिछ गईं। एक शासक मारा गया, एक शत्रु मारा गया, एक दोस्त ने जान दे दी और प्रेमिका पत्नी ने अपने प्राण त्याग दिए। आपको बता दें कि अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी क्षेत्र में पृथ्वीराज चौहान की समाधि आज भी अफगानिस्तान में आठ सौ साल से राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान की समाधि को शैतान बताता और उसपर जूते मारकर अपमानित करते हैं। जिसके बाद भारत सरकार ने उनकी अस्थियां भारत मंगवाने का फैसला किया था। बता दें अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लोगों की नजरों में मुहम्मद गोरी हीरो बना हुआ है जबकि पृथ्वीराज चौहान को वो अपना दुश्मन मानते हैं। चूंकि पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की हत्या की थी, यही वजह है कि पृथ्वीराज चौहान की समाधि को वे लोग तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं ।लेकिन वो सच्चे दर्यादिल राजपूत शासक थे जिन्होंने अपने दुश्मन को 17 बार माफ किया। अपने प्यार को पाने के लिए युद्ध किया और दोस्ती मरते दम तक निभाई।