देवाशीष मोहंती उड़ीसा से विश्व कप का लोगो बनने तक का सफर।
आज के दौर में क्रिकट को गेंदबाजों से ज्यादा बल्लेबाजों का खेल कहा जाता। बहुत सारे नियम बल्लेबाजों को फायदा पहुंचाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि विश्व क्रिकट बल्लेबाजों का वर्चस्व अभी देख रहा है। वक्त की सुई थामकर आज से करीब 25 साल पहले, उस दौर में भी क्रिकेट के आसमान पर कई बल्लेबाज चमक रहे थे जिनमें खासतौर पर ब्रायन लारा, सचिन तेंदुलकर, मोहम्मद अजहरुद्दीन और सनथ जयसूर्या का नाम शामिल था। इन नामों में भी सबसे खतरनाक नाम था सनथ जयसूर्या। उस दौर में जयसूर्या अपने शीर्ष पर थे।
साल 1997-98 में भारत टेस्ट श्रृंखला खेलने श्रीलंका गया। सीरीज के पहले टेस्ट में जयसूर्या और रोशन महानामा ने भारतीय गेंदबाजी के साथ खिलवाड़ करते हुए स्कोरबोर्ड पर रिकॉर्ड 952 रन टांगे। पहले टेस्ट में बुरी तरह फेल होने के बाद भारतीय टीम में बदलाव हुए। इन बदलावों के चलते ही 9 अगस्त 1997 को शुरू होने वाले टेस्ट में उड़ीसा का एक लड़का टेस्ट डेब्यू कर रहा था। जब पहली पारी में श्रीलंका का स्कोर 53 रन था तो उस दुबले पतले उड़िया लड़के ने जयसूर्या के बैट की ओर बॉल फेंकी लेकिन बॉल जयसूर्या को चकमा देते हुए बल्ले का बाहरी किनारा लेकर स्लिप में खड़े सचिन तेंदुलकर के हाथों में चली गई। वो लड़का यहीं नहीं रुका उसने टेस्ट में 74 रन देकर चार विकेट लिए जिसमें रोशन महानामा और अरविंद डिसिल्वा जैसे बड़े बल्लेबाजों के विकेट भी शामिल थे। अपने पहले ही टेस्ट में सबको चौंकाने वाले उस दुबले पतले लड़के का नाम था देवाशीष मोहंती। वही देवाशीष महंती जिन्होंने उड़ीसा जैसे राज्य में क्रिकट का दीये रोशन किया वही देवाशीष मोहंती जिन्हें उनके साथी पागल कहा करते थे।
देबाशीष मोहंती भारतीय क्रिकट के उन चुनिंदा नामों में से एक है जिनके भारतीय टीम में आने से एक पूरे राज्य को ही नई दिशा मिल गई थी। साल 1976 में उड़ीसा के भुवनेश्वर में जन्में मोहंती एक मध्यम वर्गीय परिवार से थे। लगभग हर भारतीय पिता की तरह देबाशीष मोहंती के पिता को भी उनका क्रिकेट खेलना पसंद नहीं था लेकिन पढ़ाई में औसत रहने वाले देवाशीष के लिए क्रिकट एक जुनून था। देबाशीष की माने तो उन्होंने साल 1983 में भारतीय टीम की विश्व कप जीत के बाद ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। साल बीतने के साथ देवाशीष मोहंती के सर पर क्रिकट का खुमार चढ़ता जा रहा था। इस खुमार के चलते ही देवाशीष ने शाहिद स्पोर्ट्स क्लब ज्वाइन कर लिया। शुरुआत में आक्रामक बल्लेबाजी करने वाले देबाशीष ने बाद में तेज गेंदबाजी पर काम करना शुरू किया। देबाशीष रोज प्रैक्टिस के लिए 8 किलोमीटर साइकिल चला कर स्पोर्ट्स क्लब जाया करते थे। देबाशीष मेहनत कर रहे थे मगर आगे की राह बहुत मुश्किल थी। मेहनत के बाद भी देबाशीष का चयन 1994 में जिला स्तरीय क्रिकेट टीम में नहीं हुआ लेकिन देबाशीष हार मानने वालों में नहीं थे। देबाशीष ने मैदान पर 6-7 घंटे मेहनत करना शुरु कर दी। स्पोर्ट्स क्लब की कोई भी ऐसी दीवार नहीं थी जहां देवाशीष ने गेंद का निशाना न छोड़ा हो।
क्रिकेट को लेकर देबाशीष के जुनून को देख उनके आसपास के लोग उन्हें पागल कहा करते थे। साल 1994 के बाद देवाशीष का खेल बेहतर होता चला गया जिसका नतीजा रहा साल 1996 में उनका रणजी ट्राफी डेब्यू। देबाशीष ने अपने पहले ही रणजी मैच में बंगाल के खिलाफ 9 विकेट लेकर सनसनी मचा दी। अपने पहले ही रणजी मैच के बाद देबाशीष की चर्चा भारतीय क्रिकट के गलियारों में होने लगी। देवाशीष का शानदार प्रदर्शन उन्हें पहले दिलीप ट्रॉफी और फिर इंडिया A टीम में ले आया। देवाशीष का दो साल के अंदर ही एक क्लब गेंदबाज से इंडिया टीम A तक का ये सफर करिश्माई था लेकिन आश्चर्यजनक नहीं था क्योंकि विशेषज्ञों की माने तो देबाशीष की प्रतिभा भी कमाल की थी। देबाशीष के पास गेंद को विकेट के दोनों ओर स्विंग कराने की कला थी। साथी देबाशीष की विकेट लेने की काबलियत उन्हें उस दौर के सभी भारतीय तेज गेंदबाजों से अलग करती थी। यही वजह रही कि देबाशीष ने साल 1997 में श्रीलंका के विरुद्ध टेस्ट डेब्यू किया।
हालांकि इसके बाद देबाशीष केवल एक टेस्ट मैच खेल पाए लेकिन देबाशीष ने अपनी गेंदबाजी का असल जौहर वनडे क्रिकेट में दिखाया। देबाशीष ने साल 1997 में पाकिस्तान के विरुद्ध सहारा कप में वनडे डेब्यू किया। टेस्ट की तरह वनडे में भी मोहंती ने पहला विकेट बाएं हाथ के बल्लेबाज का ही लिया। उस बल्लेबाज का नाम था सईद अनवर। वो सईद अनवर जिन्हें पाकिस्तान में बायें हाथ का सचिन कहा जाता था लेकिन सहारा कप में युवा मोहंती ने अनुभवी सईद अनवर की नाक में दम कर दिया। देबाशीष ने तीन बार सईद अनवर जैसे अनुभवी खिलाड़ी को आउट किया।
उस सिरीज को याद करते हुए सचिन तेंदुलकर ने एक शो में बताया सहारा कप के एक मैच के दौरान खाने के समय जब सईद अनवर सचिन तेंदुलकर से मिले तो उन्होंने सचिन से बोला “यारो तुम्हारा महंती क्या बॉलिंग करता है मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आता”। देबाशीष ने उस सीरीज में सबसे अधिक आठ विकेट लिए।
एक शानदार शुरुआत के बाद देवाशीष के लिए साल 1998 बेहद खराब गुजरा, साल 1998 साधारण गुजरने के बाद सबको उम्मीद थी कि, देबाशीष इस 1999 विश्व कप मिस कर देंगे लेकिन आखिरी मौके पर देवाशीष को इंग्लैण्ड जाने वाले टीम में शामिल किया गया। इंग्लैंड में जाकर देबाशीष क्या कमाल करेंगे ये शायद को देवाशीष को भी पता नहीं होगा।
देवाशीष ने 1999 विश्व कप में सबको चौंकाते हुए 10 विकेट प्राप्त किए। इंग्लैंड के विरुद्ध एजबेस्टन में ग्रीम हिक और स्टीवर्ट के विकेटों ने देबाशीष को हर भारतीय की आंख का तारा बना दिया और मैच जीत कर सुपर सिक्स के लिए क्वालिफाई कर गया।
देवाशीष ने केन्या के विरुद्ध 56 रन देकर चार विकेट लेने का कारनामा भी इस विश्व कप में ही किया। देबाशीष मोहंती 1999 विश्वकप की खोज माने गए। आंखों को पसंद आने वाला उनका सरल बॉलिंग एक्शन 1999 विश्वकप का ऑफिसियल ग्राफिकल लोगो बना।
1999 में करिश्माई कामयाबी के बाद भी देबाशीष मोहंती भारतीय टीम में जगह पक्की नहीं कर पाए हैं। साल 2001 का जनवरी महीना, अगरतला में दलीप ट्रॉफी मैच के दौरान देबाशीष ने एक दुर्लभ काम को अंजाम दिया। दरअसल देवाशीष ने ईस्ट जोन की तरफ से खेलते हुए सौ जोन की पारी के सभी 10 विकेट प्राप्त किए। देवाशीष ने घरेलू क्रिकेट में वो कारनामा कर दिखाया था जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनिल कुंबले ने किया था, जबकि उस समय साउथ जोन की बैटिंग लाइनअप में लक्ष्मण और द्रविड़ जैसे खिलाड़ी भी थे। एक तेज गेंदबाज का पारी के सभी 10 विकेट लेना कोई छोटी बात नहीं है।
देबाशीष अखबारों में छा गए, सबको मिट्टी कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहर ढाने की बारी है लेकिन इस शानदार प्रदर्शन के बाद भी देबाशीष को सिर्फ चार वनडे मैच खेलने का मौका मिला। जहां एक तरफ अजीत अगरकर को पांच बार वापसी का मौका मिला वहीं देबाशीष को चयनकर्ताओं ने फिर कभी याद नहीं किया।
देबाशीष मोहंती उड़ीसा के लिए महेंद्रसिंह धोनी की तरह ही थे, एक ऐसा राज्य जहां की संस्कृति खेल के उलट मानी जाती है, एक ऐसे राज्य से आए खिलाड़ी का विश्व कप का लोगो बनने तक का ये सफर कई बच्चों की आखों में ख्वाब की तरह सज गया। देबाशीष ने आकस्मिक रूप से क्रिकेट करियर खत्म होने के बाद भी हार नहीं मानी और घरेलू क्रिकेट खेलते रहे। देवाशीष ने 117 फर्स्ट क्लास मैचों में 21.05 की लाजवाब औसत से 417 विकेट लिए, जबकि पैंतालीस अंतरराष्ट्रीय वनडे मैचों में 39.15 की औसत से 57 विकेट लिए। देबाशीष मोहंती के घरेलू क्रिकट के आकड़े साफ-साफ इशारा करते हैं कि, देबाशीष को पर्याप्त मौके मिले होते तो उनकी प्रतिभा का कोई सानी नहीं था, लेकिन देवाशीष को इस बात पर कोई भी अफसोस नहीं है।
एक इंटरव्यू में देवाशीष ने कहा था मेरे नसीब में भारत के लिए इतना ही क्रिकेट खेलना लिखा था। संन्यास के बाद क्रिकट के साथ बतौर कोच जुड़े रहे। देबाशीष को साल 2011 में ओडिसा रणजी टीम का कोच नियुक्त किया गया। देबाशीष अगले सात सालों तक ओडिशा टीम के कोच रहे। फिलहाल देवाशीष इस पाँच मेंबर वाली भर्ती चयन समिति के सदस्य हैं। देबाशीष ओडिशा से आने वाले पहले क्रिकेटर के बाद अब उड़ीसा से आने वाले पहले चयनकर्ता भी हैं।