सोमनाथ मंदिर का इतिहास
History of Somnath Temple
सोमनाथ मंदिर भारत के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है। यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान और दर्शनीय स्थल है। बहुत सी प्राचीन कथाओं के आधार पर इस स्थान को बहुत पवित्र माना जाता है।
सोमनाथ का अर्थ सोम के भगवान से है। सोमनाथ मंदिर शाश्वत तीर्थ स्थान के नाम से जाना जाता है। पिछली बार नवंबर 1947 में इसकी मरम्मत कराई गई थी। उस समय वल्लभभाई पटेल जूनागढ़ दौरे पर आए थे तभी इसकी मरम्मत का निर्णय लिया गया था। पटेल की मृत्यु के बाद कन्हैयालाल मानकलाल मुंशी के हाथों इसकी मरम्मत का कार्य पूरा किया गया जो उस समय भारत सरकार के ही मंत्री थे। यह मंदिर रोज सुबह छह बजे से रात नौ बजे तक खुला रहता है। यहां रोज तीन आरती होती है। सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे।
कहा जाता है कि इसी मंदिर के पास भाल का नाम की जगह है जहां भगवान कृष्ण ने धरती पर अपनी लीला समाप्त की थी। सोमनाथ में पाए जाने वाले शिवलिंग को भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह शिवजी का मुख्य स्थान भी है। इस शिवलिंग के यहां स्थापित होने की बहुत सी पौराणिक कथाएं हैं। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग की स्थापना वहीं की गई है जहां भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए थे।
वास्तव में चौंसठ ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है, लेकिन इनमें से बारह ज्योतिर्लिंग को ही सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। शिवजी के सभी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ में और बाकी वाराणसी रामेश्वरम द्वारका इत्यादि जगहों पर स्थित है। प्राचीन समय से ही सोमनाथ पवित्र तीर्थ स्थान रहा है। त्रिवेणी संगम के समय से ही इसकी महानता को लोग मानते आए हैं। कहा जाता है कि चंद्र भगवान सोन ने यहां अभिशाप की वजह से अपनी रौनक खो दी थी और यहीं सरस्वती नदी में उन्होंने स्नान किया था। परिणामस्वरूप चंद्रमा का वर्धन होता गया और वह घटता गया।
इसके शहर प्रभाष का अर्थ अनेक रोनक से है और साथ ही प्राचीन परंपराओं के अनुसार ये सोमेश्वर और सोमनाथ के नाम से भी जाना जाता है। जे गॉर्डन मिल्टन के पारंपरिक दस्तावेजो के अनुसार सोमनाथ में बने पहले शिव मंदिर को बहुत ही पुराने समय में बनाया गया था। दूसरे मंदिर को वल्लभी के राजा द्वारा 649 ईस्वी में बनाया गया था। कहा जाता है कि सिन्ध के अरब गवर्नर अल जुनेद ने 725 ईस्वी में इसका विनाश किया। इसके बाद 815 ईस्वी में गुर्जर प्रतिहार नाथ राजा नागभट्ट द्वितीय ने तीसरे मंदिर का निर्माण करवाया। इसे लाल पत्थरों से बनवाया गया था लेकिन अल जुनेद द्वारा सोमनाथ पर किये गये आक्रमण का कोई एतिहासिक सबूत नहीं है। जबकि नागभट्ट द्वितीय जरूर इस तीर्थ स्थान के दर्शन करने सौराष्ट्र आये थे।
कहा जाता है कि सोलंकी राजा मूलराज ने 997 ईस्वी में पहले मंदिर का निर्माण करवाया होगा, जबकि कुछ इतिहासकारों का कहना है कि सोलंकी राजा मूलराज ने कुछ पुराने मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि कई बार शासकों ने इसे क्षति भी पहुँचाई थी लेकिन फिर कुछ राजाओं ने मिलकर इस एतिहासिक पवित्र स्थान की मरम्मत भी करवाई थी। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे पांचवी बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्टपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। 1948 में प्रभास, तीर्थ प्रभास पाटन के नाम से भी जाना जाता था।
इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका भी थी। यह जूनागढ़ रियासत का मुख्य नगर था लेकिन नवीनतम इन्फोटेनमेंट के बाद इसकी तहसील नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया। मंदिर का बार बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिणी ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथ मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग बगीचे देकर आय का प्रबंध भी किया हुआ है। यह तीर्थ पितृ गणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मों के लिए भी प्रसिद्ध है।
चैत्र, भाद्र और कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीनों महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियां हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम भी होता है। इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है और इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
चलिए अब हम सोमनाथ मंदिर के बारे में कुछ रोचक बातें जानते हैं। 1665 में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया था, लेकिन बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। बाद में पुणे के पेशवा, नागपुर के राजा भोसले, कोल्हापुर के छत्रपति भोंसले, रानी अहिल्याबाई होल्कर और ग्वालियर के श्रीमंत पटीलबुवा शिंदे के सामूहिक संयोग से 1783 में इस मंदिर की मरम्मत की गई थी।
1296 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था लेकिन अंत में गुजरात के राजा करण ने इसका बचाव किया था। 1024 में मंदिर को अफगान शासक ने क्षति पहुँचा कर गिरा दिया था लेकिन फिर परमार राजा भोज और सोलंकी राजा भीम देव प्रथम ने 1026 से 1042 के बीच इसका पुनर्निर्माण किया। कहा जाता है लकडिय़ों की सहायता से उनके मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया लेकिन बाद में कुमारपाल ने से बदल कर पत्थरों का बनवा दिया। मंदिर की चोटी पर 37 फीट लंबा एक खंभा है जो दिन में तीन बार बदलता है। वर्तमान सोमनाथ मंदिर का निर्माण 1950 में आरंभ हुआ था।
मंदिर में ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठान का कार्य भारत के पहले राष्टपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने किया था। सोमनाथ मंदिर आज देश में चर्चा का विषय बन चुका है। अब जो हिन्दू धर्म के लोग नहीं हैं उन्हें मंदिर में जाने के लिए विशेष परमिशन लेनी होती है। अब तक मिली जानकारी के अनुसार जो हिन्दू नहीं हैं उन्हें मंदिर में जाने के लिए ट्रस्ट को मान्य कारण बताना होगा।
सोमनाथ मंदिर के महत्वपूर्ण तथ्य
- सोमनाथ मंदिर की विशेषता क्या है?
भारत के स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस मंदिर का पुननिर्माण करवाया। यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इस मंदिर का शिखर 150 फुट ऊंचा है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। - सोमनाथ मंदिर पर सर्वप्रथम किस मुस्लिम आक्रमणकारी ने आक्रमण किया और कब?
साल 1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था. कहा जाता है कि अरब यात्री अल-बरुनी के अपने यात्रा वृतान्त में मंदिर का उल्लेख देख गजनवी ने करीब 5 हजार साथियों के साथ इस मंदिर पर हमला कर दिया था. इस हमले में गजनवी ने मंदिर की संपत्ति लूटी और हमले में हजारों लोग भी मारे गए थे - सोमनाथ मंदिर कितनी बार लूटा?
सोमनाथ मंदिर की समृद्धता से प्रभावित होकर गजनवी ने इसपर 17 बार हमला कर इसकी संपत्ति लूटी. गजनवी के हमले के बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका निर्माण कराया. इसके बाद जब 1297 में दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे फिर गिराया गया. 1706 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया. - सोमनाथ मंदिर में किसकी मूर्ति है?
जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया। - महमूद गजनवी के आक्रमण का सामना करने वाला भारतीय शासक कौन था?
चौथा आक्रमण (1005 ई.)- 1005 ई. में महमूद ग़ज़नवी ने मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध मार्च किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भटिण्डा के शासक आनन्दपाल को पराजित किया और बाद में दाऊद को पराजित कर उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया।