ई प्रसन्ना: क्रिकेट की पिच पर शतरंज की बिसात बिछाने वाला महान स्पिनर |
E Prasanna: The Greatest Spinner
इरापल्लि अनंत राव श्रीनिवास प्रसन्ना(Erapalli Anantharao Srinivas Prasanna) मैसूर में पैदा हुआ वो स्पिनर जो खेल के मैदान पर क्रिकेट नहीं शतरंज खेलता था। यानी इतना दिमाग लगाता कि, बल्लेबाज एक-एक करके उसके जाल में फंसते जाते थे। गैरी सोबर्स से लेकर क्लाइव लॉयड और केन चैपल तक ने इसकी तारीफ की। चैपल ने प्रसन्ना को लेकर कहा था “मैने प्रसन्ना से बेहतरीन स्लो बॉलर अपने पूरे करियर में फेस नहीं किया” ।
प्रसन्ना का जन्म 22 मई 1940 को हुआ था। पिता सिविल सर्वेंट थे और बेटे को इंजीनियर बनता देखना चाहते थे, लेकिन प्रसन्ना का ध्यान तो क्रिकेट में था। जब 1961 में यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग का पहला साल चल रहा था तो उनका सेलेक्शन इंडियन टीम के लिए हो गया। प्रसन्ना हमें बताते हैं, मेरे पिता नहीं चाहते थे कि, लड़का पढ़ाई छोड़कर क्रिकेट में शामिल हो। जब मैं अपना पहला टेस्ट खेला तो पिता बहुत नाराज हुए। 1961 में जब टीम वेस्टइंडीज जाने वाली थी, तो पिता ने साफ-साफ कह दिया था कि क्रिकेट छोड़ो, पढ़ाई करो। उस वक्त बीसीसीआई सचिव एम चिन्नास्वामी काम आए। उन्होंने मेरे पिता को मनाया कि, अपने लड़के को वेस्टइंडीज जाने दें और इस बात पर सहमति बनी कि, वापिस आकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करेंगे।
मगर जब प्रसन्ना वापिस आए तो जिंदगी बदल चुकी थी। उनके पिता का देहांत हो गया था। अब क्रिकेट छोड़ उन्हें अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करनी थी, नौकरी ढूंढनी थी, क्योंकि क्रिकेट में पैसा नहीं था।
प्रसन्ना वजह बताते हुए कहते हैं कि, रणजी मैच खेलने के लिए रोज पांच रुपये मिलते थे। अगर छह दिन का टेस्ट मैच होता तो प्लेयर को 220 रुपए तक मिलते थे। मेरे मां-बाप कहते थे कि, क्रिकेट खेलोगे तब तक तो ठीक है लेकिन जब छोड़ दोगे तो पैसे के मामले में खुद को वहीं खड़ा पाओगे। यही कारण था कि, मैंने क्रिकेट छोड़ दिया और इंजीनिरिंग करने वापस चला गया।
इसके बाद पांच साल तक प्रसन्ना क्रिकेट से दूर रहे और फिर इंजीनियरिंग करके एक दिन वो मैदान पर लौटे और जमीन थी वेस्टइंडीज की। भारतीय टीम 1966-67 सीजन में वहां गई थी। पांच साल तक क्रिकेट से दूर रहने के वाबजूद प्रसन्ना ने पहले ही टूअर मैच में 87 रन देकर आठ विकेट ले लिए और इसके बाद वो रुके नहीं।
अपनी ओफ स्पिन का तिलिस्म उन्होंने ऐसे देशों में जाकर भी दिखाया जहां भारतीय टीम कभी नहीं जीती थी। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ 16 टेस्ट मैचों में 95 विकेट लिए। प्रसन्ना यहां आते-आते दुनिया के बेस्ट बॉलर बन चुके थे। उनकी बॉलिंग के कारण ही 1968 में इंडिया पहली बार किसी विदेशी जमीन पर टेस्ट सीरीज जीती थी। न्यूजीलैंड के खिलाफ उस सीरीज में चार टेस्ट मैचों में प्रसन्ना ने 24 विकेट लिए थे। बेस्ट बॉलिंग फिगर था 76 रन देकर आठ विकेट।
इसी बीच एक और रिकॉर्ड प्रसन्ना के नाम हुआ ये था, अपनी शुरुआती 20 टेस्ट मैचों में 100 विकेट लेने का रिकॉर्ड। ये किसी भी इंडियन बॉलर द्वारा लिए गए सबसे तेज 100 टेस्ट विकेट थे। बाद में इस रिकॉर्ड को रविचंद्रन अश्विन ने तोड़ा। अश्विन ने 18 टेस्ट मैचों में 100 विकेट लिए। बी चंद्रशेखर, एस वेंकटराघवन और बिशन सिंह बेदी के साथ प्रसन्ना की चौकड़ी ऐसी थी कि, दुनिया भर के मैदानों में उनका कोहराम था। साल 1962 से 83 के बीच इन चारों ने 853 विकेट लिए। इन्हीं के बूते भारतीय टीम न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज और इंग्लैंड में जीतने का सपना पहली बार पूरा कर पाई। लेकिन प्रसन्ना कहते हैं, इंडियन टीम मे सुभाष गुप्ते से अच्छा स्पिनर कभी पैदा नहीं किया। दुनिया ने भले ही हम चारों को पहचाना मगर सुभाष गुप्ते पर देश को हमेशा गर्व रहेगा।
इंडिया का ये स्पिन अटैक उस वक्त दुनिया भर में बल्लेबाजों को छका रहा था जब फास्ट बॉलर्स का आतंक हुआ करता था। वेस्टइंडीज से लेकर आस्ट्रेलिया और यहां तक कि पाकिस्तान की टीम भी अपने तेज गेंदबाजों के फैले डर पर सवार थी। उस बीच प्रसन्ना युक्त भारत के स्पिनर्स की ये चौकड़ी बहुत साल तक कायम रही। साल 1978 में 18 साल बाद टीम इंडिया पाकिस्तान के दौरे पर गई। प्रसन्ना उस वक्त 38 साल के हो गए थे। वेंकट और चंद्रशेखर 33 साल के थे, बेदी 37 साल के थे। तीन मैचों की सीरीज में इंडिया दो जीरो से हार गई। सीरीज में पहली बार तीन वनडे मैच भी रखे गए थे, जिनका हिस्सा प्रसन्ना नहीं थे। बेदी की कप्तानी में तीन मैच खेले गए और आखिरी मैच में बेदी ने इस विरोध में मैच पाकिस्तान को दे दिया कि उनका बॉलर सरफराज नवाज बाउंसर पर बाउंसर फेंक रहा था। यह क्रिकेट के इतिहास में इस तरह से हारा इकलौता मैच था। मगर इस सीरीज को इस बार के लिए भी याद रखा जाता है कि, ये भारत स्पिन चौकड़ी का अंत था।
चारों वापिस भारत आए और टीम से बाहर हो गए। खास बात ये भी रही कि, चारों ने कभी भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से ऑफिशली रिटायरमेंट नहीं ली। इनका टीम से बाहर जाने का कारण ये भी दिया गया कि इनकी उम्र हो गई थी और टीम वनडे क्रिकेट के हिसाब से सोचने लगी थी। कप्तान अजीत वाडेकर के खांचे में ये खिलाड़ी फिट नहीं बैठते थे। इस पर प्रसन्ना बड़ी विनम्रता से कहते हैं समय के साथ आगे बढ़ना चाहिए हम भी बढ़ गए।
अपने करियर के कुल 49 टेस्ट मैचों में प्रसन्ना ने 189 विकेट लिए थे। रणजी में बॉम्बे के राज को तोड़ा था और कर्नाटक को दो बार चैंपियन बनाया। अपने करियर में खेले कुल 235 घरेलू मैचों में प्रसन्ना ने 935 विकेट लिए थे। 1985 में जब टीम इंडिया ने पाकिस्तान को Benson & Hedges World Championship के फाइनल में हराया तो प्रसन्ना उस वक्त टीम के मैनेजर थे।
ये पूछने पर कि करियर के वो कौनसे पल हैं जिनके थ्रिल को वो आज भी याद करते हैं। प्रसन्ना बताते हैं, 1968 मे वेस्टइंडीज के दौरे पर गैरी सोबर्स का विकेट लेना, बतौर भारतीय टीम मैनेजर 1985 के इस कप में पाकिस्तान को हराते हुए देखना और बीसीसीआई से मिले लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड जो 2014 में मिला था को मैं याद करता हूं।
78 साल के प्रसन्ना अब क्रिकेट में सक्रिय नहीं हैं। बेंगलुरु में रहते हैं मगर इस गेम को अभी भी फॉलो करते हैं। फोन पर उनसे बातचीत के दौरान जब आईपीएल का जिक्र आता है तो वे अपनी भारी आवाज में इस क्रिकेटिंग इवेंट पर अपनी राय बताते हैं। बस टाइमपास अच्छा होता है। बाकी आईपीएल में कोई स्पिन गेंदबाज अपनी स्किल से विकेट नहीं लेता। मेरा मानना है कि, जहां बल्लेबाज अटैकिंग क्रिकेट खेलता है वहां विकेट लेना उतना ही आसान होता है। बल्लेबाज जहां डिफेंसिव होकर खेलेगा वहां विकेट निकालना उतना ही चैलेंजिंग होता है। अब खुद ही समझ लीजिए कि आईपीएल में कितनी क्वालिटी स्पिन देखने को मिलती है।