मायावती, मुलायम सिंह और लखनऊ का गेस्ट हाउस काण्ड

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मायावती, मुलायम सिंह और लखनऊ का गेस्ट हाउस काण्ड
मायावती, मुलायम सिंह और लखनऊ का गेस्ट हाउस काण्ड

मायावती, मुलायम सिंह और लखनऊ का गेस्ट हाउस काण्ड


लखनऊ गेस्ट हाउस कांड ये मायावती के साथ हुआ एक ऐसा हादसा था, जिन्दगी में कुछ चीजें अच्छी रही जिसकी वजह से ये एक बड़ा हादसा होने से बच गया था। क्राइम, पॉलिटिक्स का बहुत पहले से चोली दामन का साथ रहा, तो पॉलिटिक्स की दुनिया में बहुत सारे बड़े बड़े क्राइम हुए। कुछ क्राइम सामने आये, कुछ का खुलासा ना हो सका। बहुत सारे आज तक राज रहस्य ही बने हुए हैं, तो पॉलिटिक्स, क्राइम दोनों एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते। खासतौर पर आज इस मौजूदा दौर में जहां सत्ता और पावर के लिए लोग एक दूसरे को मार भी सकते हैं और ये पहले से चला आ रहा हैं, जब राजशाही हुआ करती थी, राजा रजवाड़े का दौर था, तब भी कुर्सी पाने के लिए कत्ल हुए, तमाम खून खराबा हुआ। राजनीति, जाति या सत्ता के साथ कहीं न कहीं बेमानी और क्राइम भी आता है।

ये कहानी लखनऊ गेस्ट हाउस कांड की, इसके जड़ में सत्ता की भूख है, कुर्स खोने का डर है. पावर जाने का खौफ है। 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद। देश में एक अजीब तरह का माहौल पैदा हो गया था। उसके बाद दंगे भी हुए और एक तरह से राजनीति ने भी नयी करवट ली थी। तो उसी दौरान पॉलिटिकस का पूरा गेम भी चेंज हुआ और अलग अलग राज्यों में उस वक्त के मूड और माहौल को देखते हुए गठबंधन हुए, जो दुश्मन पार्टियां थी वो दोस्त बने और जो दोस्त थे वो दुश्मन बन गये ।

इसका असर यूपी में भी पड़ा, 1993 में वहां चुनाव होना था। विधानसभा का चुनाव ड्यू था और बस कुछ ही महीनों के बाद चुनाव था। तो एक लहर चल रही थी, राम जन्मभूमि विवाद और देश में एक अजीब सा नफरत का भी माहौल था। उस वक्त कुछ कट्टर ताकतें हैं वो भी एक जुट हो रही थी और उन ताकतों को रोकने के लिए दूसरे कट्टर ताकतें भी एक जुट हो रहे थे, तो सत्ता पाने के लिए यूपी में तब दो पार्टी जो कभी दोस्त नहीं हमेशा दुश्मनी रही, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी। इन दोनों को लगा कि ये बेहतर मौका है। चूंकि दोनों पार्टियों का सबसे बड़ा वोट बैंक दलित, मुस्लिम हैं।

तो उनको लगा कि अगर ये सब साथ आ जाएंगे तो सरकार बन सकती तो अब जाहिर सी बात यूपीए सरकार की मंशा कुर्सी की चाह है, तो फिर राजनीति में कहते हैं कि कोई परमानेंट दुश्मन नही होता, राजनीति में सही और गलत भी नहीं होता।

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के भी चुनाव में गठबंधन हो जाता उसका चुनाव होता है लेकिन इस गठबंधन के बावजूद किसी पार्टी को कोई बहुमत नहीं मिलता, समाजवादी पार्टी कुछ सीटें मिलती हैं और बीएसपी को करीब 67 तो दोनों के मिलाकर भी 200 सीटें मिली जो सरकार बनाने के लिए कम थी। लेकिन ये सबसे बड़ा गठबंधन था, बाकी कुछ पार्टियों ने भी सपोर्ट किया और इस तरीके से सबसे बड़े दल के रूप में एसपी और बीएसपी थे । तो इनकी गठबंधन की सरकार बन जाती है और चूंकि सौ से ज्यादा सीटें समाजवादी पार्टी की थीं और 67 सीटें मायावती की थी तो तय होता कि मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री होंगे। चुनाव से पहले का गठबंधन था लिहाजा मायावती, मुलायम सिंह की सरकार को सपोर्ट करती थीं लेकिन सरकार में शामिल बस सरकार को सपोर्ट कर देती है।

उसके बाद ये सरकार चलती है। अब दो अलग-अलग मिजाज के लोग एक साथ आए थे एक ही प्लेटफार्म पर, तो छिटपुट छिटपुट लड़ाई तो शुरू से ही चल रही थी। पावर को लेके, पार्टी को लेकर, काम को लेकर बहुत सारी चीजें थीं नाराजगी भी थी तो ये लोगो ने बोला ये गठबंधन सरकार पांच साल तक एक-साथ नहीं चलेगी और बीच में कड़वाहट आ ही गई।
इस बीच में 1995 की शुरूआत मे अप्रैल, मई में रिश्ते और खराब हो जाते हैं। मुलायम सिंह और मायावती की पार्टी के बीच, तब यूपी के राज्यपाल मोतीलाल वोरा थे और अब मायावती को मुलायम सिंह की सरकार से गठबंधन तोड़ना है और उधर बीजेपी वो तैयार थी, मायावती को सपोर्ट करके मायावती को सीएम बनाने के लिए। तो दिल्ली में बड़े नेताओ की मुलाकात होती है, तब वाजपेयी, आडवानी जी, और बीएसपी के बड़े नेता वक्त काशीराम भी थे, तो इन सबके बीच बातचीत होती है और फिर ये तय होता है, कि मायावती, मुलायम सिंह यादव की पार्टी से अपना समर्थन वापस लेगी और बीजेपी उन्हें अपना सपोर्ट देगी और वो सीएम के दावेदार भी होगी।

इस फार्मूले की भनक मुलायम सिंह यादव को लग जाती और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। मई के महीने में ये सारी चीजें डील, ये फॉर्मूला सा बन चुका था। इसके बाद मायावती और तब काशीराम बीमार थे हॉस्पिटल में एडमिट थे। मायावती इसके बाद ही दिल्ली से लखनऊ दो लेटर लेकर जाती।

एक लेटर में लिखा होता है कि, मैं समाजवादी पार्टी सरकार से अपना समर्थन वापस ले रही हू और दूसरा लेटर था, जो बीजेपी की तरफ से था कि, हम मायावती को सपोर्ट करेंगे और मायावती मुख्यमंत्री होंगी। समझौता दिल्ली में होता है लेकिन खबर लखनऊ तक मुलायम सिंह के कानों तक पहुंच जाती है। एसपी खेमे में हड़कंप मच जाता है। अब जाहिर सी बात है कि, एसपी को मालूम था सरकार गिर रही है तो किसी तरह जोड़तोड़ बातचीत की कोशिश होती है लेकिन मायावती पहले ही मन बना चुकी थी। इस बीच मुलायम सिंह और एसपी ये तमाम लोग बीएसपी को तोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन इसमें से कम से कम एक तिहाई एमएलए अगर एक साथ नहीं टूटते तो उन सबकी सदस्यता रद्द हो जाएगी।

लेकिन फिर भी एसपी कोशिश करती और बीएसपी के बड़े नेता थे राज बहादुर वो 12 एमएलए लेकर मुलायम सिंह के सपोर्ट पर चले जाते हैं लेकिन यहां 67 का एक तिहाई करीब 20- 25 सीटें होती और ये 12 थी तो सरकार ये सपोर्ट करने सकते थे। बातचीत के दरवाजे बंद हो चुके थे सिर्फ 12 एमएलए राज बहादुर के वो बीएसपी से बागी होकर उधर बहुत चुके थे बाकी एमएलए की तलाश थी।

अब दिल्ली से मायावती जब लखनऊ पहुंचती हैं तो लखनऊ में वो मीरा रोड मार्ग के स्टेट गेस्ट हाउस जो अच्छे लोकेशन पर था। स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर वन और टू पर मायावती के लिए था। मायावती सरकार को सपोर्ट भी किया था उन्होंने और 67 एमएलए के साथ थी। तो इस राज्य अतिथि गृह में वो वहां पर थीं और उस दिन बाकायदा वो अपने विधायकों के साथ मीटिंग कर रही थीं। चूंकि उनको गवर्नर को समर्थन वापसी का लेटर देना था और दावा ठोका था सरकार बनाने का और उसे बताना था कि, मुझे ये पार्टियां सपोर्ट करेंगी और मैं बहुमत साबित कर दूं तो उसके लिए सारे एमएलए को वहां इकट्ठा किए थे, फॉर्मूले की भनक लीक हो चुकी थी। मुलायम सिंह को जानकारी मिल चुकी थी और अपने कुछ बाहुबलियों को इकट्ठा करते हैं। और उनको कहा जाता है कि, जाके उन एमएलए को पकड़ना है। एसपी के समर्थक जिसमें बाहुबली लीड कर रहे थे वह स्टेट गेस्ट हाउस में जाते हैं और धावा बोल देते हैं।

वहां मीटिंग चल रही थी उसके बाद जितने भी एमएलए मिले उन्होंने उसको पकड़ पकड़ के पीटना शुरू कर दिया। जिसको मौका मिला वो भागा गेस्ट हाउस से 5 विधायक हाथ में आ गए। इनको गाड़ियों में डाला गया और सीधे सीएम ऑफिस ले जाया गया। उन सब से कहा गया कि तुम ये पेपर पर साइन करोगे तुम मुलायम सिंह की सरकार को सपोर्ट करोगे और उनके डर से हालात ये थे कि, बिचारे कई ने तो खाली पेपर भी साइन कर दिया। खैर इधर बाकी उत्पात जारी था, गेस्ट हाउस के अंदर मायावती को तब तक शोरशराबे और हंगामे से पता चल गया कि यहां से कुछ गड़बड़ है।

फिर उनके लोगों ने बताया कि एसपी के कार्यकर्ता और बाहुबली वो बहुत गुस्से में हैं और सारा तोड़फोड़ कर रहे हैं तो आप अपने कमरे से बाहर मत निकलना आपकी जान को खतरा है, तो मायावती ने अपने रूम अंदर से लॉक कर लिया। उनके साथ कुछ और उनके खास लोग थे। दरवाजा और पीटना शुरू हो गया तो अंदर जितने सोफे और बाकी चीजें थीं सारी चीजें दरवाजे के साथ लगाई गई। ताकि दरवाजा खोलने में आसानी न हो और मायावती अंदर से लगातार पुलिस को, अपने तमाम लोगो को फोन कर रही है लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आ रहा था।

अब ये था कि बस कुछ भी हो सकता है उनकी जान भी जा सकती है। इससे पहले जब कुछ लोग मायावती जब जा रही थी जब चल एसपी के कार्यकर्ता बाकायदा मायावती के साथ धक्का मुक्की और गालीगलौच की, उनके कपड़े फाड़े और तभी उनके फिर समर्थक उनको किसी तरह वहां से बचाते हुए अंदर ले आये और दरवाजा बंद कर लिया। अगर वो हाथ लग जाती तो फिर आगे बताने क्या क्या होता।

वो लगातार मदद के लिए फोन कर रही थी। पुलिस को सीएम का ही आदेश है तो कौन मदद के लिए आगे आएगा। इस बीच में फिर गेस्ट हाउस के बिजली और पानी का वो लाइन काटी जाती है अंधेरा हो जाता है वहां पे उस वक्त के एसएसपी मौजूद थे। लेकिन चश्मदीदों के हवाले से कहा गया कि उन तक भी मैसेज था कि क्या हो रहा वो जानते थे तो वो भी कुछ नहीं कर रहे थे, बल्कि वो लगातार बस सिगरेट पीकर धुआं उड़ा रहे थे। जो उस गेस्ट हाउस के इन्चार् थे, वो भी कुछ नहीं कर रहे थे। लेकिन वहा दो पुलिस अफसर थे एक वीआईपी पुलिस के एसएचओ हुआ करते थे वो मौजूद थे और ये गेस्टहाउस हजरतगंज थाने के तहत आता तो वहां के एसएचओ वहां पर मौजूद थे।

जाहिर सी बात है कि ऊपर से हुक्म इन तक आया होगा कि, यहां पर क्या होगा और क्या होने वाला है और आप कुछ भी करोगे। लेकिन इन दोनों ने अपने फर्ज को निभाना ज्यादा जरूरी समझा। इन लोगों ने ऊपरी आदेश को अनसुना किया इनको लगा कि यहां पर कुछ भी बड़ा क्राइम हो सकता है तो उन्होंने अपना फर्ज निभाते हुए बाकायदा एसपी के जो बाहुबली और कार्यकर्ता थे उनको धकेलना शुरू किया उनको भगाना शुरू किया। उनकी देखादेखी कुछ और नीचे के पुलिसवालों ने भी मदद करनी शुरू की। इस बीच ये मैसेज भी भिजवाया कि मायावती को मैडम आप दरवाजा तब तक मत खोलिए जब तक हम लोग ना कहे। उन्होंने बताया हम पुलिसवाले हैं।

इधर भीड़ बढ़ती जा रही थी मदद मिल नहीं रही थी। उस वक्त बीजेपी के बहुत पावरफुल नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी वो मायावती को अपनी बहन मानते थे और मायावती उनको भाई मानती थीं और ये फरुखाबाद के थे और फर्रूखाबाद सही चुनाव लड़ते थे तो ब्रह्मदत्त द्विवेदी को जब ये पता चली तो वो वहां पहुंचे और उन्होंने जाकर मायावती को बचाने की कोशिश की।

इस बीच जब ये हंगामा और तो ये बात मीडिया तक भी पहुंच गई और मीडिया के लोग भी गेट पर खड़े हो गए। बाहुबलियों ने मीडिया को वहां से भगाने की कोशिश की क्योंकि उन्हें लगा कि इससे सारी पोल खुल जाएगी। तब 1995 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का असर बहुत कम था, प्रिंट ही सबकुछ था। लेकिन अब मीडिया के लोग खड़े हुए थे तो वो थोड़े घबराए भी और मीडिया के लोगों को पता चल गया कि क्या हो रहा है अगर इनके सामने सब कुछ होगा तो कल को सारे फंसेंगे। कई ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने गेट पर खड़े उन उपद्रवियों, बाहुबलियों को अंदर जाने से भी रोका। इधर ब्रह्मदत्त द्विवेदी लाठी अच्छा चलाते थे तो उनको कहीं से डंडा मिला वो डंडे के बल पर उन्होंने बहुत सारे लोगों से अकेले लड़ाई लड़ी और उनको भगाया।

इस बीच ये बात लखनऊ के डीएम तक पहुंची। डीएम के साथ गवर्नर मोतीलाल वोरा तक बात पहुंची। आगे क्या होना था, मोतीलाल वोरा को मालूम था कि, ये समर्थन वापसी के बाद कौन मुख्यमंत्री बनेगा। तो उन्होंने फौरन अपने पावर का इस्तमाल किया पुलिस को अलर्ट किया, फिर फोर्स भेजी। इधर दो एसएचओ और ब्रह्मदत्त द्विवेदी अपने जान दाव पर लगाये हुए थे। धीरे-धीरे करके खदेड़ना शुरू किया और उसके बाद एक-एक कर जिसको पकड़ सके पकड़ाए तो कई घंटे की मशक्कत के बाद वो सारे वहां से भागे। अब पुलिस ने जो है ईमानदारी से काम किया उसके बाद और गेस्ट हाउस पर अपना कब्जा किया।

आखिर में फिर लोग जाते हैं मायावती को बाहर से आवाज देते हैं मैडम अब सब कुछ पीस है सब चले गए हैं आप दरवाजा खोल दे। लेकिन उसके बावजूद भी कई मिनट तक मायावती ने दरवाजा नहीं खोला उन्हें लगा कि, ये साजिश है दरवाजा खोलते उन्हें मार दिया जाएगा। जब बाद में फिर दरवाजे के बाहर से एक फोन से बातचीत होती है और भरोसा दिलाया जाता है और अपने ही भरोसेमंद आवाज सुनाई जाती है तो मायावती दरवाजा खोलती है उसके बाद पुलिस ने अपनी कस्टडी में सुरक्षित ले जाती है। और इस तरीके से मायावती की जान बचती है। वरना जो हालात थे उसमें शायद कुछ भी हो सकता था मायावती के साथ।

इस घटना ने मायावती को इतना ज्यादा डरा दिया या इतना ज्यादा गुस्सा दिला दिया कि उसके बाद फिर उनकी मुलायम सिंह के साथ कभी रिश्ते अच्छे नहीं हुए। अगले दिन 3 जून 995 को उन्होंने राज्यपाल मोतीलाल वोरा को लेटर दिया समर्थन वापसी का और साथ में सरकार बनाने का दावा ठोका। और 3 जून 1995 को ही मायावती को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने बहुत सारे फैसले लिए। एक उन्होंने ऑर्डर पास किया। इस गेस्ट हाउस कांड की जांच के लिए और इसके लिए उन्होंने सीनियर आईएएस अफसर रमेश चंद्रा के लीडरशिप में एक कमेटी बनाई गई और रमेश चंद्रा कमेटी ने फिर अपनी रिपोर्ट दी और इस रिपोर्ट में मुलायम सिंह यादव समेत कुल 74 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। इन 74 लोगों को मुलायम सिंह को दोषी करार दिया गया।