क्या है रामसेतु की हक़ीक़त: प्राकृतिक या मानव निर्मित?| Reality of Ramsetu: Natural or Man made.

साइंटिस्ट राज भगत पलानीसामी ने जीआईएस और रिमोट सेंसिंग से भी ये पता लगाने की कोशिश की, कि पुल प्राकृतिक तरीके से बना है या मानव निर्मित है।

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राम सेतु पुल प्राकृतिक या मानव निर्मित
राम सेतु पुल प्राकृतिक या मानव निर्मित

क्या है रामसेतु की हक़ीक़त: प्राकृतिक या मानव निर्मित?

Reality of Ramsetu: Natural or Man made.


राम सेतु की उम्र जांचने के लिए एक प्रोजेक्ट लॉन्च किया जा रहा है। इसका नाम है अंडरवॉटर रिसर्च प्रोजेक्ट, यानि जाँच करने वाले पानी के अंदर उतरकर पुल की उम्र नाप लेंगे। इस प्रोजेक्ट को अनुमति मिल गई है। इस अंडरवॉटर रिसर्च का जिम्मा नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी एन आयोग के वैज्ञानिकों को सौंपा गया है। रिसर्च के लिए मंजूरी दी है, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई के अंतर्गत आने वाले सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ने ।

इस बारे में संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल का कहना है कि, इस तरह की रिसर्च को मंजूरी देने का फैसला एक उच्च स्तरीय कमेटी ने किया है। कमेटी में तमाम एक्सपर्ट शामिल रहे और सभी पॉइंट्स पर ध्यान दिया गया उन्होंने भरोसा दिलाया है कि, रिसर्च के दौरान रामसेतु को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाएगा कि कोई इकोलॉजिकल दिक्कत भी ना पैदा हो।

क्या है रामसेतु ?

करीब 50 किलोमीटर लंबा पुल है ये दूरी तमिलनाडु के में रामेश्वरम से लेकर श्रीलंका के मन्नार तक की है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस पुल का निर्माण भगवान श्रीराम की वानर सेना ने किया था, ताकि भगवान श्रीलंका जाकर माता सीता को रावण की कैद से आजाद करा सकें। अब इसकी एक मान्यता तो भगवान नाम से ही जुड़ी हुई है कि, वानर सेना ने नल-नील की अगुवाई में पुल बनाएगा, लेकिन 2020 में रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट के साइंटिस्ट राज भगत पलानीसामी ने जीआईएस और रिमोट सेंसिंग से भी ये पता लगाने की कोशिश की, कि पुल प्राकृतिक तरीके से बना है या मानव निर्मित है। राज भगत कहते हैं कि, आमतौर पर लोगों को राम सेतु ब्रिज की सैटलाइट तस्वीर देखकर धोखा होता है। रामेश्वरम और मन्नार आईलैंड के बीच स्थित को मोनो सेक्शन मानव निर्मित है लेकिन यहां एक पेंच है। असल में इस बीच का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की लहरें पहुंचती ही नहीं हैं। यहां पर भारत के दक्षिण पूर्व में स्थित पाल की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी की लहरें रेत के टीलों और मूंग डीपो का निर्माण करते और बिगाड़ते हैं। ये जगह बागी समुद्री इलाके से छिछली है। इस तरह के कई टीलों का जुड़ाव छिछला और ऊंचा किस्म का है जो पुल जैसा प्रतीत होता है मानो एक लाइन में कहें तो राजभवन की एक स्टडी कह रही है कि ये सेतु प्राकृतिक भी हो सकता है। हालांकि उन्होंने ये भी जोड़ा था कि पाल खाड़ी और मन्नार की खाड़ी की लहरें यहां आपस में टकराती रहती हैं। अगर ये टकराव बंद हो और समुद्र का जलस्तर थोड़ा कम हो तो ये सेतु बेहतर तरीके से दिखाई देगा और तब इस तरह की रिसर्च का बेहतर निष्कर्ष निकल सकेगा।

रामसेतु को वर्णन किन किन शास्त्रों में आया है। वाल्मीकि रामायण में लिखा गया है कि इस पुल को बनाने के लिए हाई टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया गया। बंदर लोग मशीनों पर लादकर पत्थर यहां तक लाए थे सो योजन लंबा पुल था। एक योजन को 13 से 15 किलोमीटर का बताया जाता है। वाल्मीकि रामायण में ही लिखा है कि इतनी लंबाई तक कुछ बंदर रस्सी पकड़ के खड़े थे ताकि पुलिस दम सीधा हो। वाल्मीकि रामायण में इस पुल का नाम नल सेतु था। इसके अलावा कालिदास के रघुवंश में, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण और ब्रह्मपुराण में भी इसके ऊपर किस्से कहानियां मिलते हैं।

2007 में उस समय की यूपीए सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग करार प्रोजेक्ट पास करने के चक्कर में थी। इस प्रोजेक्ट में इसी पुल वाली जगह पर तकरीबन 83 किलोमीटर खुदाई होनी थी वो भी समुद्र के अंदर। भारत से श्रीलंका के बीच डायरेक्ट रूट बनाने के लिए उस वक्त बीजेपी ने इस प्रोजेक्ट का विरोध किया था। मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया। 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वहां कोई पुल नहीं है। यह स्ट्रक्चर किसी इंसान नहीं बनाया कि सुपर पावर ने बनाया होगा और खुद ही नष्ट कर दिया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सबूत है ये भी जल्दी में पूज्य हो गए।

2016 में सुप्रीम कोर्ट में इसी मसले पर सुनवाई चल रही थी तो कांग्रेस के कपिल सिब्बल ने कहा था कि राम सेतु कोरी कल्पना है बड़ा बवाल हुआ था।